Vaishakh Amavasya पर करें विष्णु चालीसा का पाठ, पितरों का मिलेगा आशीर्वाद; जीवन में आएगी सुख-समृद्धि
वैशाख अमावस्या (Vaishakh Amavasya 2025 Yoga) पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में जगत के पालनहार भगवान विष्णु और देवी मां लक्ष्मी जी की पूजा करने से जीवन में खुशियों का आगमन होगा। साथ ही साधक पर पितरों की कृपा बनी रहेगी। इस शुभ अवसर पर साधक अपने पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करते हैं। साथ ही देवों के देव महादेव का जलाभिषेक करते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में वैशाख अमावस्या का खास महत्व है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा नदी में स्नान-ध्यान करते हैं। इसके बाद देवों के देव महादेव और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। गुरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक पर पितरों की कृपा बरसती है। अगर आप भी पितरों की कृपा पाना चाहते हैं, तो वैशाख अमावस्या के दिन गंगा स्नान कर पितरों का तर्पण करें। साथ ही तर्पण के समय विष्णु चालीसा का पाठ करें।
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विष्णु चालीसा
॥ दोहा ॥
विष्णु सुनिए विनय,सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूँ,दीजै ज्ञान बताय॥
॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी। कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी। त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत। सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥
तन पर पीताम्बर अति सोहत। बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे। देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे। काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन। दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन। दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण। कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण। केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा। तब तुम रूप राम का धारा॥
भार उतार असुर दल मारा। रावण आदिक को संहारा॥
आप वाराह रूप बनाया। हिरण्याक्ष को मार गिराया॥
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया। चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया। रूप मोहनी आप दिखाया॥
देवन को अमृत पान कराया। असुरन को छबि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया। मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया। भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया। कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया॥
मोहित बनकर खलहि नचाया। उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलंधर अति बलदाई। शंकर से उन कीन्ह लड़ाई॥
हार पार शिव सकल बनाई। कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी। बतलाई सब विपत कहानी॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी। वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी। वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी। हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने धुरू प्रहलाद उबारे। हिरणाकुश आदिक खल मारे॥
गणिका और अजामिल तारे। बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
हरहु सकल संताप हमारे। कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
देखहुँ मैं निज दरश तुम्हारे। दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चहत आपका सेवक दर्शन। करहु दया अपनी मधुसूदन॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन। होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण। विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥
करहुँ आपका किस विधि पूजन। कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुँ प्रणाम कौन विधिसुमिरण। कौन भाँति मैं करहुँ समर्पण॥
सुर मुनि करत सदा सिवकाई। हर्षित रहत परम गति पाई॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई। निज जन जान लेव अपनाई॥
पाप दोष संताप नशाओ। भवबन्धन से मुक्त कराओ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ। निज चरनन का दास बनाओ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै। पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥
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