Move to Jagran APP

Narali Purnima 2021: आज है नारली पूर्णिमा का त्योहार, जानिए इसकी पूजन विधि और परंपरा

Narali Purnima 2021 सावन पूर्णिमा के दिन जहां उत्तर भारत में राखी का त्योहार मनाया जाता है तो वहीं दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा या नारली पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। आइए जानते हैं क्या है नारली पूर्णिमा त्योहार की पंरपरा और पूजन विधि....

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Sun, 22 Aug 2021 10:05 AM (IST)Updated: Sun, 22 Aug 2021 10:05 AM (IST)
Narali Purnima 2021: आज है नारली पूर्णिमा का त्योहार, जानिए इसकी पूजन विधि और परंपरा
आज है नारली पूर्णिमा का त्योहार, जानिए इसकी पूजन विधि और परंपरा

Narali Purnima 2021: नारली पूर्णिमा का त्योहार अन्य त्योहारों जैसे श्रवणी पूर्णिमा, रक्षा बंधन और कजरी पूर्णिमा की तरह मनाया जाता है। सावन पूर्णिमा के दिन जहां उत्तर भारत में राखी का त्योहार मनाया जाता है, तो वहीं दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा या नारली पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। नारली शब्द का अर्थ है नारियल और पूर्णिमा का अर्थ है पूर्णिमा का दिन। इस दिन नारियल का विशेष महत्व है। इस साल नरली पूर्णिमा का त्योहार पंचांग के अनुसार 22 अगस्त को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं क्या है नारली पूर्णिमा त्योहार की पंरपरा और पूजन विधि....

loksabha election banner

नारली पूर्णिमा की पूजन विधि

नारली पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से जल और समुद्र के देवता, वरुण की पूजा की जाती है। इस दिन, वरूण देव को नारियल चढ़ाने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि श्रावण पूर्णिमा पर पूजा अनुष्ठान करने से भगवान वरुण प्रसन्न होते हैं और समुद्र के सभी खतरों से सुरक्षा करते हैं। नारली पूर्णिमा का त्योहार विशेष रूप से तटीय क्षेत्र में रहने वाले मछुआरा समुदाय के लोग मनाते हैं। इस दिन भगवान शिव का भी पूजन होता है। मान्यता है कि नारियल की तीन आंखे त्रिनेत्रधारी शिव का प्रतीक हैं और सावन मास भगवान शिव का प्रिय मास है। इस दिन भगवान शिव को नारियल और उनकी प्रिय वस्तुओं का भोग लगाया जाता है।

नारली पूर्णिमा की परंपरा

दक्षिण भारत में समाज का हर वर्ग इस त्योहार को अपने तरीके से मनाता है। इस दिन उपनयन या यज्ञोपवीत अनुष्ठान सबसे व्यापक रूप से किया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर जनेऊ बदलने की परंपरा है। इस कारण इस पर्व को अबितम, श्रावणी या ऋषि तर्पण भी कहते हैं। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों को भोज या दान देने की भी परंपरा है। विशेष रूप से समुद्र तटीय क्षेत्र के लोग नारली पूर्णिमा का त्योहार मनाते हैं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.