Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दैनिक जीवन में भगवद गीता के ज्ञान को इस तरह से कर सकते हैं लागू

    By Priyanka SinghEdited By: Priyanka Singh
    Updated: Sun, 02 Apr 2023 08:29 PM (IST)

    भगवदगीता से कुछ महत्वपूर्ण सीख हमें मिलती हैं जो हमें अपने दैनिक जीवन में अनुसरण करने चाहिए। श्रीमदभगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें यह समझाते हैं कि कैसे हार-जीत की भावनाओं अन्य भविष्य के डर से हमें मुक्त होना है और कैसे अपने दैनिक जीवन को सुख से जीना है।

    Hero Image
    दैनिक जीवन में भगवद गीता के ज्ञान को इस तरह से कर सकते हैं लागू

    भगवद गीता हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है जो मन, शरीर और आत्मा की जीवन शैली के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। भगवत गीता मात्र एक कहानी नहीं है, आज के सामाजिक प्रवेश से इसे कई तरीके से जोड़ा जा सकता है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अर्जुन जिनके पास सब कुछ था सुख, समृद्धि और एक खुशहाल परिवार, देखते ही देखते सब कुछ खो बैठे और उन्हीं सब वस्तुओं को वापस पाने के लिए उन्हें अपनों से ही युद्ध करना पड़ा। वह उस स्थिति में थे जहां उन्हें सब कुछ खोने के गम में जीते हुए अपनों के सामने खुद को विजेता साबित करना था। इतना ही नहीं, उन्हें अपने मन में कई शंकाओं और भय से जूझना पड़ा कि क्या करना सही था और निकट भविष्य में वह क्या खो देंगे।

    यही सब भय और शंका जो उस समय उनके मन में चल रही थी, आज कहीं ना कहीं हम सब के अंदर मौजूद है। हम सभी बीती बातों का दुख और आने वाले कल का डर रखते हैं। जैसे एक व्यापारी जिसने अपना व्यवसाय खो दिया है, वह सब कुछ खोने के बारे में दुखी होगा। वहीं, एक उद्यमी जो कुछ नया करने की कोशिश कर रहा है उसे असफलता का डर रहेगा। इसका मूल कारण हमारे अपने लोग या हम जिस समाज में रहते हैं वह हो सकता है। सामाजिक क्षेत्र में हम अपने आप को विजेता साबित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, जिसका परिणाम मानसिक रूप से टूटना हो सकता है।

    जीवन के निर्देशक के रूप में, भगवदगीता से कुछ महत्वपूर्ण सीख हमें मिलती हैं जो हमें अपने दैनिक जीवन में अनुसरण करने चाहिए। श्रीमदभगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें यह समझाते हैं कि कैसे इन हार-जीत की भावनाओं, अन्य भविष्य के डर से हमें मुक्त होना है और कैसे अपने दैनिक जीवन को सुख से जीना है।

    भगवत गीता में हम देखते हैं कि अर्जुन जिनके पास मात्र श्रीकृष्ण है, वह कैसे विजय प्राप्त करते हैं और दुर्योधन के सामने जिनके पास अक्षौहिणी सेना और अनगिनत सलाहकार है, वह हार जाता है। आप में से कई सवाल करेंगे कि यह संभव कैसे हैं? कैसे अर्जुन अकेला ही इतनी विशाल सेना से विजय प्राप्त कर सकता है? इस प्रश्न का जवाब देते हुए श्रीमद भगवत गीता कहती है 'संशयात्मा विनश्यति' अर्थात, दुर्योधन जो अपने सभी सलाहकारों से सलाह लेना चाह रहा है, जिसे अपनी ही बुद्धि, विवेक ,निर्णय और परिश्रम पर संदेह है क्योंकि वह असत्य के साथ है। वह कभी युद्ध नहीं जीत सकता चाहे सेना कितनी भी विशाल और ताकतवर क्यों ना हो। जबकि अर्जुन जो अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए और खुद पर विश्वास करते हुए भगवान श्रीकृष्ण के बताए हुए मार्ग पर चलते हैं, वह अकेले युद्ध जीतने की क्षमता रखता है।

    तो श्रीमदभगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार मनुष्य को कभी भी अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए और सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए। जो मनुष्य अपने आप पर संदेह करता है और असत्य का साथ देता है। वह कभी भी जीवन में विजय नहीं होता।

    (Ambreesh Daas, Founder of Sharnagati से बातचीत पर आधारित)

    Pic credit- freepik

    comedy show banner