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    ऐसे बनते है महामंडलेश्वर और ये है इस पद की शर्तें

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Wed, 11 May 2016 11:41 AM (IST)

    शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है। शैव मत के अखाड़ों में संन्यास और नागा परंपरा का प्रचलन है।

    उज्जैन। सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है। शिक्षा, ज्ञान और संस्कार के साथ सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए संन्यासी को महामंडलेश्वर जैसे पद पर बिठाया जाता है। अखाड़ा प्रमुख के पद हासिल करने में संतों को वर्षों लग जाते हैं। शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है। शैव मत के अखाड़ों में संन्यास और नागा परंपरा का प्रचलन है।

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    आदि शंकराचार्य ने किया संगठित

    श्री निरंजनी अखाड़े के महंत आशीष गिरि महाराज ने बताया कि कुंभ के आयोजन में सबसे बड़ा आकर्षण दशनामी अखाड़ों का है। आदि गुरु शंकराचार्य ने विभिन्न पंथों में बंटे साधु-समाज को संगठित किया था। अखाड़ों में नागा और साधारण संत की परंपरा है।

    थानापति, कोठारी, भंडारी जैसे पद

    नागा परंपरा में थानापति, कोतवाल, कोठारी, भंडारी, कारोबारी सहित अनेक पद हैं। नागाओं की योग्यता और उनके स्तर को देखते हुए उन्हें पद सौंपे जाते हैं। साधारण संत को महामंडलेश्वर जैसे पद पर पहुंचने के लिए योग्य होना जरूरी है।

    मंडलीश्वर से बने मंडलेश्वर

    जानकारी के मुताबिक बहुत पहले साधु-संतों की मंडलियां चलाने वालों को मंडलीश्वर कहा जाता था। 108 और 1008 की उपाधि वाले संत के पास वेदपाठी विद्यार्थी होते थे। अखाड़ों के संतों का कहना है कि ऐसे महापुरुष जिन्हें वेद और गीता का अध्ययन हो, उन्हें बड़े पद के लिए नामित किया जाता था। पूर्व में शंकराचार्य अखाड़ों में अभिषेक पूजन कराते थे, वैचारिक मतभेद के बाद यह काम महामंडलेश्वर के जिम्मे हो गया। अखाड़ों ने अपने महामंडलेश्वर बनाना शुरू कर दिए।

    महामंडलेश्वर पद की शर्तें

    1. साधु संन्यास परंपरा से हो।

    2.वेद का अध्ययन, चरित्र, व्यवहार व ज्ञान अच्छा हो।

    3. अखाड़ा कमेटी निजी जीवन की पड़ताल से संतुष्ट हो।

    फिर होता है पट्टाभिषेक

    सब कुछ सामान्य होने के बाद संन्यासी का विधिवत पट्टकाभिषेक कर महामंडलेश्वर पद पर अलंकृत किया जाता है। फिर महामंडलेश्वर के बीच आपसी सहमति से आचार्य के पद पर अलंकृत किया जाता है। इसके बाद अखाड़े की सारी गतिविधियां आचार्य महामंडलेश्वर के हाथ संपन्न कराई जाती हैं।

    शाही जुलूस में मिलता है मान

    महामंडलेश्वर यतींद्रानंद गिरि ने बताया कि अखाड़े में महामंडलेश्वर सम्मान का पद है। शाही जुलूस में नागा संत अखाड़े के देवता को सबसे आगे लेकर चलते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर के बाद वरिष्ठता के क्रम पर छत्र चंवर और सुरक्षा के साथ महामंडलेश्वर का रथ चलता है।

    ये हैं अन्य पद

    श्रीमंहत, महंत, सचिव, मुखिया, जखीरा प्रबंधक

    अखाड़ों का पदक्रम

    -सबसे बड़े आचार्य महामंडलेश्वर होते हैं। कार्यकाल छह साल।

    -मुख्य संरक्षक और उपाध्यक्ष के पद भी।

    -वर्तमान में जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद हैं।

    -मुख्य संरक्षक महंत हरि गिरि हैं, वे अखाड़े का संचालन करते हैं।

    -पंच तपोनिधि निरंजनी, पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, अटल अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंच अग्नि अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा में आचार्य पीठ की मान्यता है।

    -वैष्णव संप्रदाय में श्री महंत मुख्य पद माना जाता है।

    -उदासीन अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है। इनमें जखीरा प्रबंधक, श्री महंत के साथ पीठाधीशवर के पद भी हैं।