इस तरह हमारी उन्नति हो सकती है.....
सिर्फ कर्म करना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि कर्म का एक विज्ञान सम्मत तरीका भी होना चाहिए। तभी हमारी उन्नति हो सकती है।
सिर्फ कर्म करना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि कर्म का एक विज्ञान सम्मत तरीका भी होना चाहिए। तभी हमारी उन्नति हो सकती है।
श्री मद्भगवद्गीता पूरे विश्व को कर्म का संदेश देने वाला श्रेष्ठतम ग्रंथ है। कर्म ही पूजा है और निष्काम कर्म ही सच्चा संन्यास है, इस आदर्श की स्थापना गीता ने की है। जब हम कर्म की बात करते हैं, तो ज्यादातर केवल काम की ही बात होती है। हम यह भूल जाते हैं कि किसी भी काम को करने का अपना एक तरीका भी होता है। इसी तरीके को हमारे शास्त्रों में विज्ञान कहा गया है।
ऋग्वेद में ज्ञान और विज्ञान दोनों शब्द आए हैं। वहां ज्ञान का अर्थ है-जानकारी तथा विज्ञान का अर्थ है-उस
जानकारी का उपयोग करना। इस प्रकार हम विज्ञान को च्एप्लॉयड नॉलेजज् कह सकते हैं। स्पष्ट है कि यदि हम ज्ञान का उपयोग नहीं कर रहे हैं, तो वह व्यर्थ है। ज्ञान का उपयोग हम तभी कर सकते हैं, जब कोई काम करें। कोई काम तभी पूरा हो सकता है, जब उसे वैज्ञानिक ढंग से किया जाए। जब हम कोई भी काम सही तरीके से
करते हैं, वह चाहे झाडू लगाने, बर्तन मांजने और कपड़े धोने का ही काम क्यों न हो, तो न केवल वह काम जल्दी होता है, बल्कि अच्छा भी होता है। जब काम अच्छे तरीके से होता है, तो हमें ऊब नहीं होती। उस काम में आनंद आने लगता है।
यदि किसी काम को करने में आनंद आने लगे तो इससे बड़ा उपहार भला और क्या हो सकता है। एक सेठ जी के यहां एक मुनीम जी थे और एक धोबी था। धोबी गधों पर कपड़े लादकर नदी तक जाता। मेहनत से कपड़े धोथा। जबकि मुनीम जी दस बजे आते। आराम से गद्दी पर बैठे रहते और दिन ढलने के बाद घर चले जाते। धोबी को
बहुत कम पैसा मिलता था, जबकि मुनीम जी को बहुत ज्यादा। धोबी को यह बात अन्यायपूर्ण लगी। उसने सेठजी से इस बात की शिकायत की कि मुनीम जी दिन भर बैठे रहते हैं, जबकि मैं दिन भर मेहनत करता हूं। फिर भी मुझे मुनीम से कम पैसे मिलते हैं।
सेठजी ने एक दिन धोबी को बुलाया और कहा कि
नगर में एक बारात आई हुई है। जाकर पता करो
कि कितने लोग आए हैं। धोबी गया और आकर
बताया कि दो सौ लोग आए हैं। सेठ जी ने पूछा
कि बारात कहां से आई है? धोबी फिर से गया
और आकर बताया कि च्रामपुर से आई है।ज् सेठ
जी ने पूछा कि बारात किसके यहां आई है? धोबी
फिर से गया और लौटकर बोला-च्सेठ चंदूलाल
के यहां आई है। ९उसी के सामने सेठजी ने मुनीम
को बुलाया और कहा कि-च्मुनीम जी पता करके
बताइए कि बारात में कितने लोग आए हैं?ज् मुनीम
जी गए और लौटकर बोले च्दो सौ लोग। इसके
बाद सेठ ने वही सारे प्रश्न मुनीम जी से पूछे जो
धोबी से पूछे थे। मुनीम जी ने सभी प्रश्नों के उत्तर
तुरंत दे दिए। बारात को लेकर मुनीम के पास सारे
सवालों के जवाब मौजूद थे। धोबी ने सेठ जी से
माफी मांगते हुए कहा कि च्सेठ जी मैं समझ गया
कि मुनीम जी की तनख्वाह मुझसे ज्यादा क्यों है।ज्
हमें हमेशा दूसरों की थाली में ज्यादा घी दिखता
है, लेकिन हम इस पर कभी विचार नहीं करते
कि हमारी थाली में घी क्यों नहीं है। हमें सोचना
चाहिए कि हम जो काम कर रहे हैं, कैसे उसे
और बेहतर तरीके से करें? इसे ही आज की
भाषा में वैल्यू एडिशन करना कहा जाता है। यही
तरीका हमें उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकता
है। अन्यथा यदि हम कोल्हू के बैल की तरह लगे
रहेंगे, तो काम तो होता रहेगा, जिंदगी भी चलती
रहेगी, लेकिन उसमें वह गुणवत्ता नहीं आएगी, जो
वास्तव में आनी चाहिए।
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