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    इस विचित्र विधि से हुआ था गुरु द्रोणाचार्य का जन्म

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Sat, 21 Nov 2015 10:53 AM (IST)

    भौतिक संसार में रहने वाले अधिकतर मनुष्यों को लगता है कि तकनीक का विकास अभी कुछ दशकों पहले ही हुआ है जबकि पुराणों और वेदों में ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि हमारे पूर्वज पहले से कई तकनीकों का ज्ञान बखूबी रखते थे।

    भौतिक संसार में रहने वाले अधिकतर मनुष्यों को लगता है कि तकनीक का विकास अभी कुछ दशकों पहले ही हुआ है जबकि पुराणों और वेदों में ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि हमारे पूर्वज पहले से कई तकनीकों का ज्ञान बखूबी रखते थे। आज हम उन तकनीकों का संशोधित प्रयोग करते हैं जो हमारे पूर्वज हजारों सालों पहले अपना चुके थे। महाभारत के आदिपर्व में कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के बारे में कहा जाता है कि वो अपने माता-पिता के परस्पर मिलन से नहीं बल्कि एक विचित्र विधि द्वारा पैदा हुए थे

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    जिसे आज के भौतिक युग में ‘टेस्ट ट्यूब’ के नाम से जाना जाता है। अधिकतर लोग ये सोचते है कि दुनिया में सबसे पहले इस विधि द्वारा कौरवों ने जन्म लिया था जब उन्हें उनकी माता गांधारी ने घड़ों में मांस के टुकड़े को रखकर सौ कौरवों को जन्म दिया था। पांडवों और कौरवों गुरु द्रोणाचार्य दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी थे।आदिपर्व में गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की एक विचित्र कथा सुनने को मिलती है। द्रोणाचार्य कौरव व पाण्डव राजकुमारों के गुरु थे। उनके पुत्र का नाम अश्वत्थामा था जो यम, काल, महादेव व क्रोध का अंशावतार था।महाभारत के आदिपर्व की कथानुसार एक समय गंगाद्वार नामक स्थान पर महर्षि भारद्वाज रहा करते थे। वे बड़े व्रतशील व यशस्वी थे। एक बार वे यज्ञ कर रहे थे। वे महर्षियों को साथ लेकर गंगा स्नान करने गए

    वहां उन्होंने देखा कि घृताची नामक अप्सरा स्नान करके जल से निकल रही है। उसे देखकर उनके मन में काम वासना जाग उठी उन्हें अपने खुले नेत्रों से उस अप्सरा के साथ काम क्रियाएं करने की कल्पना करनी आरंभ कर दी। इसके कुछ समय बाद उनका वीर्य स्खलित होने लगा। तब उन्होंने उस वीर्य को द्रोण नामक यज्ञपात्र में रख दिया। उसी से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। द्रोण ने सारे वेदों का अध्ययन किया। महर्षि भरद्वाज ने पहले ही आग्नेयास्त्र की शिक्षा अग्निवेश्य को दे दी थी। अपने गुरु भरद्वाज की आज्ञा से अग्निवेश्य ने द्रोणाचार्य को आग्नेयास्त्र की शिक्षा दी। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान की पुत्री कृपी से हुआ था। कृपी के गर्भ से महाबली अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अश्व के समान गर्जना की थी इसलिए उसका नाम अश्वत्थामा था…

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