Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तृतीय देवी: चंद्रघंटा माता के श्लोक

    By Edited By:
    Updated: Fri, 26 Sep 2014 03:54 PM (IST)

    तृतीय देवी, चंद्रघंटा माता के श्लोक पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता भगवती दुर्गा अपने तीसरे स्वरूप में चन्द्रघण्टा नाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी

    तृतीय देवी, चंद्रघंटा माता के श्लोक

    पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता

    प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता भगवती दुर्गा अपने तीसरे स्वरूप में चन्द्रघण्टा नाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण से इन्हें चन्द्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग, बाण अस्त्र दृ शस्त्र आदि विभूषित हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इनके घंटे सी भयानक चण्ड ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं। नवरात्रे के दुर्गा-उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्व है। माता चन्द्रधण्टा की उपासना हमारे इस लोक और परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद् गति को देने वाली है। ध्यान

    वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।

    सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्

    कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।

    खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ्

    पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।

    मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्घ्

    प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।

    कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ् स्तोत्र

    आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्तिरू शुभा पराम्।

    अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्घ्

    चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।

    धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ्

    नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।

    सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ् कवच

    रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

    श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्घ्

    बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धरं बिना होमं।

    स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकमघ्

    कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।

    न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्घ् शक्ति के रूप में विराजमान मां चंद्रघंटा मस्तक पर घंटे के आकार के चंद्रमा को धारण किए हुए हैं। देवी का यह तीसरा स्वरूप भक्तों का कल्याण करता है। इन्हें ज्ञान की देवी भी माना गया है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के चारों तरफ अद्भूत तेज है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। यह तीन नेत्रों और दस हाथों वाली हैं। इनके दस हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं। कंठ में सफेद पुष्पों की माला और शीर्ष पर रत्नजडिघ्त मुकुट विराजमान हैं। यह साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होने का वरदान देती हैं। कहा जाता है कि यह हर समय दुष्टों के संहार के लिए तैयार रहती हैं और युद्ध से पहले उनके घंटे की आवाज ही राक्षसों को भयभीत करने के लिए काफी होती है। उपासना मंत्र

    पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

    प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।