Hindu marriages type: कितने प्रकार के होते हैं हिंदू विवाह कौन सा है सर्वश्रेष्ठ
Eight type of Hindu marriages सनातन धर्म में मनुष्य के 16 संस्कारों की बात की गई है। जिसमें से विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार होता है। आइए जाने पुराणों में क्या लिखा है विवाह संस्कार के बारे में। फाइल फोटो।

नई दिल्ली, Hindu marriages type: सनातन धर्म में विवाह की गणना महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में की जाती है। इसलिए हिन्दू विवाह में वैदिक मंत्रों और अनेकों परंपराओं से विवाह को पूरा किया जाता है। हिन्दू धर्म के लिए आठ प्रकार के मुख्य विवाह बताए गए हैं। इन विवाह में सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म विवाह को और सबसे निम्न कोटि का स्थान पैशाची विवाह को दिया गया है। पंडित मुन्ना बाजपेई राम जी से जाने कौन-कौन से हैं ये आठ विवाह।
प्रथम ब्रह्म विवाह
पहला विवाह ब्रह्म विवाह कहा जाता है जिसे विवाह में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसमें पिता अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर तलाश कर उससे अपनी बेटी का पाणिग्रहण करवाता है। इस विवाह में पिता विद्वान, आचारवान, स्वस्थ और अच्छे कुल के वर को अपने घर आमंत्रित करता है, और कन्या को वस्त्र आभूषण से सुसज्जित कर कन्यादान करता है। इस विवाह में वर वधु की सहमति पर अग्नि के समक्ष सात फेरे दिलवाकर विवाह संपन्न कराया जाता था। हिंदुओं में यह विवाह आज भी प्रचलित है। हालांकि इसमें समय के साथ कुछ दूसरी बातें भी जुड़ गई हैं।
द्वितीय देव विवाह
दूसरे नंबर पर आता है देव विवाह। इस विवाह में पिता किसी निर्धारित यज्ञ को सफलतापूर्वक संपन्न कराने वाले पुरोहित को, अपनी कन्या दान में दे देता था। विशेष रूप से देवताओं के लिए यज्ञ करने पर यह विवाह होता था। इसीलिए इसे देव विवाह कहा गया। इस विवाह में कन्या की पूर्ण सहमति होती थी।
तृतीय आर्ष विवाह
इस विवाह में कोई ऋषि विवाह की इच्छा से कन्या के पिता को गाय और बैल या उनका जोड़ा दान में देता था, तो यह विवाह किया जाता था। यह गोदान कन्या के मूल्य के रूप में नहीं बल्कि धार्मिक कारण से गाय बैल दान में दिए जाने पर होता था। क्योंकि यह विवाह ऋषियों से संबंधित है, इसीलिए यह आर्ष विवाह कहलाता है। मूल रूप से इस विवाह के बारे में सतयुग में जिक्र आता है।
चतुर्थ प्राजापत्य विवाह
वैसे तो प्रजापत विवाह ब्रह्म विवाह की तरह ही होता है। बस इसमें कन्या का पिता नवदंपति को आदेश देता था, कि तुम दोनों मिलकर आजीवन धर्माचरण करते हुए वैवाहिक जीवन व्यतीत करो। इससे पूर्व एक विशेष पूजन भी किया जाता था। ऐसा माना जाता है, कि इस विवाह से उत्पन्न संतान अपनी पीढ़ियों को पवित्र करती है।
पंचम असुर विवाह
इस विवाह में कन्या के माता पिता वर से धन लेकर विवाह करते थे। असुर विवाह में कन्या का मूल्य प्राप्त किया जाता था, इसीलिए यह असुर विवाह कहलाया। इस विवाह को असुर विवाह कहने के पीछे एक और कारण बताया जाता है। मान्यता है कि प्राचीनकाल में असीरियन लोगों में विवाह की यह पद्धति प्रचलित थी। हो सकता है असुर शब्द असीरियन से प्रभावित हो। इस विवाह में कन्या की इच्छा या अनिच्छा का कोई महत्व नहीं होता था। जो कोई भी उसके अभाव अभिभावकों को धन देता था, उसे, उसी व्यक्ति से शादी करनी पड़ती थी।
षष्ठम गांधर्व विवाह
मौजूदा लव मैरिज गंधर्व विवाह का ही एक रूप माना जा सकता है। इस विवाह में लड़का और लड़की एक दूसरे के प्रेम में संबंध बना लेते थे। इसके बाद परिवार और माता पिता के आशीर्वाद से विवाह करते थे। इसीलिए इस विवाह को गांधर्व नाम दिया गया।
सप्तम राक्षस विवाह
इस विवाह को निम्न कोटि का विवाह माना जाता है। राक्षस विवाह में बलपूर्वक, छल कपट से, युद्ध में पराजित पक्ष की कन्याओं का अपहरण कर, उनसे इच्छा के विरुद्ध किया गया विवाह राक्षस विवाह के लाता है।
अष्टम पैशाच विवाह
इस विवाह को निकृष्टतम विवाह कहा जाता है। इसमें स्त्री की सहमति के बिना, धोखे से, बेहोशी की हालत में शारीरिक संबंध बनाने और दुष्कर्म करने के बाद विवाह किया जाता है। हालांकि दुराचार करने के बाद, वह व्यक्ति कन्या के साथ सम्मान पूर्वक विवाह कर लेता था। इसीलिए इसे विवाह तो माना गया, परंतु सबसे निकृष्ट श्रेणी का।
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