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    कहानी भगवान के भोले भाले भक्त की

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Wed, 18 Jan 2017 11:22 AM (IST)

    प्रभु जानते थे कि यह मेरा निर्मल भक्त है| छल कपट नहीं जानता| अब तो प्रगट होना ही पड़ेगा|

    कहानी भगवान के भोले भाले भक्त की

    भक्त धन्ना जी का जन्म मुंबई के पास धुआन गाँव में एक जाट घराने में हुआ| आप के माता पिता कृषि और पशु पालन करके अपना जीवन यापन करते थे| वह बहुत निर्धन थे| जैसे ही धन्ना बड़ा हुआ उसे भी पशु चराने के काम में लगा दिया| वह प्रतिदिन पशु चराने जाया करता।

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    गाँव के बाहर ही कच्चे तालाब के किनारे एक ठाकुर द्वार था जिसमे बहुत सारी ठाकुरों की मूर्तियाँ रखी हुई थी| लोग प्रतिदिन वहाँ आकर माथा टेकते व भेंटा अर्पण करते| धन्ना पंडित को ठाकुरों की पूजा करते, स्नान करवाते व घंटियाँ खड़काते रोज देखता| अल्पबुद्धि का होने के कारण वह समझ न पाता| एक दिन उसके मन में आया कि देखतें हैं कि क्या है| उसने एक दिन पंडित से पूछ ही लिया कि आप मूर्तियों के आगे बैठकर आप क्या करते हो? पंडित ने कहा ठाकुर की सेवा करते हैं| जिनसे कि मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं| धन्ने ने कहा, यह ठाकुर मुझे भी दे दो| उससे छुटकारा पाने के लिए पंडित ने कपड़े में पत्थर लपेटकर दे दिया|

    घर जाकर धन्ने ने पत्थर को ठाकुर समझकर स्नान कराया और भोग लगाने के लिए कहने लगा| उसने ठाकुर के आगे बहुत मिन्नते की| धन्ने ने कसम खाई कि यदि ठाकुर जी आप नहीं खायेंगे तो मैं भी भूखा ही रहूंगा| उसका यह प्रण देखकर प्रभु प्रगट हुए तथा रोटी खाई व लस्सी पी| इस प्रकार धन्ने ने अपने भोलेपन में पूजा करने और साफ मन से पत्थर में भी भगवान को पा लिया|

    जब धन्ने को लगन लगी उस समय उसके माता – पिता बूढ़े हों चूके थे और अकेला नव युवक था| उसे ख्याल आया कि ठाकुर को पूजा से खुश करके यदि सब कुछ हासिल किया जा सकता है तो उसे अवश्य ही यह करना होगा जिससे घर की गरीबी चली जाए तथा सुख आए| ऐसा सोच कर ही वह पंडित के पास गया| पंडित ने पहले ठाकुर देने से मना के दिया की वह ठाकुर की पूजा अकेले नहीं कर पायेगा. | दूसरा तुम अनपढ़ हो| तीसरा ठाकुर जी मन्दिर के बिना कही नहीं रहते और न ही प्रसन्न होते| इसलिए तुम जिद्द मत करो और खेतों की संभाल करो| ब्रहामण का धर्म है पूजा पाठ करना| जाट का कार्य है अनाज पैदा करना|

    परन्तु धन्ना टस से मस न हुआ| अपनी पिटाई के डर से पंडित ने जो सालीीग्राम मन्दिर में फालतू पड़ा था उठाकर धन्ने को दे दिया और पूजा – पाठ की विधि भी बता दी| पूरी रात धन्ने को नींद न आई| वह पूरी रात सोचता रहा कि ठाकुर को कैसे प्रसन्न करेगा और उनसे क्या माँगेगा| सुबह उठकर अपने नहाने के बाद ठाकुर को स्नान कराया| भक्ति भाव से बैठकर लस्सी रिडकी व रोटी पकाई| उसने प्रार्थना की, हे प्रभु! भोग लगाओ! मुझ गरीब के पास रोटी, लस्सी और मखन ही है और कुछ नहीं| जब और चीजे दोगे तब आपके आगे रख दूँगा| वह बैठा ठाकुर जी को देखता रहा| अब पत्थर भोजन कैसे करे? पंडित तो भोग का बहाना लगाकर सारी सामग्री घर ले जाता था| पर भले बालक को इस बात का कहाँ ज्ञान था| वह व्याकुल होकर कहने लगा कि क्या आप जाट का प्रसाद नहीं खाते? दादा तो इतनी देर नहीं लगाते थे| यदि आज आपने प्रसाद न खाया तो मैं मर जाऊंगा लेकिन आपके बगैर नहीं खाऊंगा|

    प्रभु जानते थे कि यह मेरा निर्मल भक्त है| छल कपट नहीं जानता| अब तो प्रगट होना ही पड़ेगा| एक घंटा और बीतने के बाद धन्ना क्या देखता है कि श्री कृष्ण रूप भगवान जी रोटी मखन के साथ खा रहे हैं और लस्सी पी रहें हैं| भोजन खा कर प्रभु बोले धन्ने जो इच्छा है मांग लो मैं तुम पर प्रसन्न हूँ| धन्ने ने हाथ जोड़कर बिनती की —

    भाव- जो तुम्हारी भक्ति करते हैं तू उनके कार्य संवार देता है| मुझे गेंहू, दाल व घी दीजिए| मैं खुश हो जाऊंगा यदि जूता, कपड़े, साथ प्रकार के आनाज, गाय या भैंस, सवारी करने के लिए घोड़ी तथा घर की देखभाल करने के लिए सुन्दर नारी मुझे दें|

    धन्ने के यह वचन सुनकर प्रभु हँस पड़े और बोले यह सब वस्तुएं तुम्हें मिल जाएँगी|

    प्रभु बोले – अन्य कुछ?

    प्रभु! मैं जब भी आपको याद करू आप दर्शन दीजिए| यदि कोई जरुरत हुई तो बताऊंगा|

    तथास्तु! भगवान ने उत्तर दिया|

    हे प्रभु! धन्ना आज से आपका आजीवन सेवक हुआ| आपके इलावा किसी अन्य का नाम नहीं लूँगा| धन्ना खुशी से दीवाना हो गया| उसकी आँखे बन्द हो गई| जब आँखे खोली तो प्रभु वहाँ नहीं थे| वह पत्थर का सालगराम वहाँ पड़ा था| उसने बर्तन में बचा हुआ प्रसाद खाया जिससे उसे तीन लोको का ज्ञान हो गया|

    प्रभु के दर्शनों के कुछ दिन पश्चात धन्ने के घर सारी खुशियाँ आ गई| एक अच्छे अमीर घर में उसका विवाह हो गया| उसकी बिना बोई भूमि पर भी फसल लहलहा गई| उसने जो जो प्रभु से माँगा था उसे सब मिल गया|

    किसी ने धन्ने को कहा चाहे प्रभु तुम पर प्रसन्न हैं तुम्हें फिर भी गुरु धारण करना चाहिए| उसने स्वामी रामानंद जी का नाम बताया| एक दिन अचानक ही रामानंद जी उधर से निकले| भक्त धन्ने ने दिल से उनकी खूब सेवा की तथा दीक्षा की मांग की| रामानंद जी ने उनकी विनती स्वीकार कर ली और दीक्षा देकर धन्ने को अपना शिष्य बना लिया| धन्ना भगवान के नाम का सुमिरन करने लगा|