जानिए 4 ऐसे महान गुरुओं के विषय में, बड़े-बड़े शूरवीर रहे जिनके शिष्य
जीवन में गुरु का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि एक गुरु ही हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाता है और हमें बाहरी दुनिया के काबिल बनाता है। इस खास मौके पर हम आपको हिंदू ग्रंथों में वर्णित कुछ ऐसे शिक्षकों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके द्वारा बड़े-बड़े महारथियों ने शिक्षा प्राप्त की थी।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल 05 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो मुख्य रूप से डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस है। भारतीय गुरु-शिष्य प्रणाली की जड़ें काफी लंबी हैं। इस बात का पता इससे चलता है कि रामायण काल से लेकर महाभारत ग्रंथ तक में अति शक्तिशाली और प्रभावशाली गुरुजनों का वर्णन मिलता है। चलिए जानते हैं उनके विषय में।
परशुराम
परशुराम जी का जन्म ऋषि जमदग्नि के पुत्र के रूप में त्रेता युग में हुआ था। परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, जिन्होंने युद्ध कला स्वयं महादेव से सीखी थी। इनका वर्णन रामायण ग्रंथ से लेकर महाभारत में भी मिलता है। साथ ही यह उन चिरंजीवियों में भी शामिल हैं, जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है। बड़े-बड़े योद्धा के शिष्य रहे हैं, जिसमें द्रोणाचार्य, सूर्यपुत्र कर्ण और भीष्म पितामह का नाम शामिल है।
देवताओं के गुरु
देवगुरु बृहस्पति न केवल ज्योतिष दृष्टि से महत्वपूर्ण माने गए हैं, बल्कि इन्हें समस्त देवी-देवताओं का गुरु भी कहा जाता है। पुराणों में बृहस्पति को महर्षि अंगिरा का पुत्र बताया गया है। इन्हें सत्य के प्रतीक के साथ-साथ बुद्धि और वाक् शक्ति का भी स्वामी माना जाता है। इनके विषय में कहा जाता है कि ये रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं।
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महर्षि वेदव्यास
वेदव्यास को मुख्य रूप से महाभारत के रचनाकार के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाली गुरु पूर्णिमा भी इन्ही के जन्मदिवस के अवसर पर मनाई जाती है। महर्षि वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर थे और माता का नाम सत्यवती था। भगवान विष्णु के अवतार होने के साथ-साथ महर्षि वेदव्यास सात चिरंजीवियों में से भी एक हैं। महर्षि वेद व्यास द्वारा ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु, रोमहर्षण आदि को शिक्षा दी गई थी।
आदि गुरु शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य महान दार्शनिक रहे हैं, जिन्हें हिन्दुओं का धर्म गुरु कहा जाता है। इनका जन्म आठवीं सदी में केरल के कालड़ी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सात साल की उम्र में इन्होंने वेदों में महारत हासिल कर ली थी। शंकराचार्य को 4 पवित्र धामों की भी स्थापना का भी श्रेय जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। इतना ही नहीं आदि शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धांत और हिन्दू संस्कृति को पुनर्जीवित करने का कार्य भी किया।
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