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    Surya Garahan 2021: जानिए, सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व

    By Umanath SinghEdited By:
    Updated: Sat, 04 Dec 2021 09:19 AM (IST)

    Surya Garahan 2021 धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि सूतक और ग्रहण के दौरान के दौरान कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। साथ ही खाने-पीने की भी मनाही है। इस दिन पूजा जप तप और दान का विशेष महत्व है।

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    Surya Garahan 2021: जानिए, सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व

    Surya Garahan 2021: 4 दिसंबर को सूर्य ग्रहण है। यह दुनिया के कई देशों में नजर आने वाला है। हालांकि, भारत में सूतक नहीं लग रहा है। अत: सूर्य ग्रहण के दौरान सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि सूतक और ग्रहण के दौरान के दौरान कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। साथ ही खाने-पीने की भी मनाही है। इस दिन पूजा, जप तप और दान का विशेष महत्व है। इसके लिए सूर्य ग्रहण के दिन गरीबों और असहाय लोगों को दान अवश्य करें। साथ ही गौ माता को चारा खिलाएं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच सूर्य आ जाने से चंद्रग्रहण और सूर्य एवं पृथ्वी के बीच चन्द्रमा के आने की वजह से सूर्यग्रहण लगता है। इस दौरान चंद्र और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाता है। सूर्य ग्रहण अमावस्या को और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन लगता है। आइए, सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व जानते हैं-

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    ग्रहण की कथा

    चिरकाल में जब दैत्यों ने तीनों लोक पर अपना अधिपत्य जमा लिया था। उस समय देवताओं ने भगवान श्रीहरि विष्णु का आह्वान कर उनसे तीनों लोकों की रक्षा की याचना की। तब भगवान श्रीहरि विष्णु जी ने युक्ति बताते हुए कहा-हे देवगण ! आप क्षीर सागर का मंथन करें। इससे अमृत की प्राप्ति होगी, जिसके पान (पीने) से आप सभी देवताओं को अमरता प्राप्त होगी। ध्यान रहें कि किसी कीमत पर दानव अमृत पान न कर सके। अगर दानवों ने अमृत पान कर लिया तो आप उन्हें युद्ध में कभी हरा नहीं पाएंगे। हां, समुद्र मंथन के लिए आपको असुरों की सहायता लेनी पड़ेगी।

    भगवान श्रीहरि विष्णु जी के वचनानुसार, क्षीर सागर में देवगणों और असुरों ने समुद्र मंथन किया। इस मंथन से विष और अमृत सहित कुल 14 रत्न प्राप्त हुए थे। जब देवतागण अमृत पान कर रहे थे। उस समय दैत्य राहु देवता की वेशभूषा में आकर देवताओं के साथ अमृतपान करने लगे। उस समय सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया।

    भगवान श्रीहरि विष्णु को जैसे ही राहु के दुःसाहस का पता चला। उन्होंने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से राहु के धड़ को सिर से अलग कर दिया, लेकिन तब तक राहु ने अमृतपान कर लिया था। हालांकि, अमृत गले से नीच नहीं उतरा था, लेकिन उसका सिर अमर हो गया। कालांतर में राहु और केतु को चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के नीचे स्थान प्राप्त हुआ है। उस समय से राहु, सूर्य और चंद्र से द्वेष की भावना रखते हैं, जिससे ग्रहण पड़ता है।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'