Somvati Amavasya 2024: सोमवती अमावस्या पर करें इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ, नाग दोष से मिलेगी मुक्ति
यह दिन पितरों की पूजा और तर्पण हेतु समर्पित होता है। इस दिन पितरों की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही सोमवती अमावस्या पर कालसर्प दोष और नाग दोष का निवारण किया जाता है। ज्योतिषियों की मानें तो नाग दोष से पीड़ित जातकों को जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह दोष बेहद कष्टकारी होता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Somvati Amavasya 2024: सनातन पंचांग के अनुसार, 08 अप्रैल को सोमवती अमावस्या है। यह दिन पितरों की पूजा और तर्पण हेतु समर्पित होता है। इस दिन पितरों की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही सोमवती अमावस्या पर कालसर्प दोष और नाग दोष का निवारण किया जाता है। ज्योतिषियों की मानें तो नाग दोष से पीड़ित जातकों को जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह दोष बेहद कष्टकारी होता है। अतः इसका निवारण तत्काल अनिवार्य है। अगर आप भी नाग दोष से पीड़ित हैं, तो सोमवती अमावस्या पर विधि-विधान से महादेव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय नाग स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
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नाग स्तोत्र
ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षकः प्रमुखास्तथा ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गन्च ये च समाश्रिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
सर्प सत्रे च ये सर्पाः अस्थिकेनाभि रक्षिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
प्रलये चैव ये सर्पाः कार्कोट प्रमुखाश्चये ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
धर्म लोके च ये सर्पाः वैतरण्यां समाश्रिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
ये सर्पाः पर्वत येषु धारि सन्धिषु संस्थिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
पृथिव्याम् चैव ये सर्पाः ये सर्पाः बिल संस्थिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
रसातले च ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
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