सीताजी के बैठते ही वह सिंहासन धरती में समा गया
हिंदू पौराणिक पवित्र ग्रंथ रामायण की मुख्य नायक और नायिका भगवान श्रीराम और माता सीता है। श्रीराम के तीन भाई थे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। श्रीराम सबसे बड़े पुत्र थे। ठीक इसी तरह माता सीता की तीन बहनें मांडवी, श्रुतकीर्ति और उर्मिला थी। माता सीता सबसे बड़ी थीं।
हिंदू पौराणिक पवित्र ग्रंथ रामायण की मुख्य नायक और नायिका भगवान श्रीराम और माता सीता है। श्रीराम के तीन भाई थे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। श्रीराम सबसे बड़े पुत्र थे। ठीक इसी तरह माता सीता की तीन बहनें मांडवी, श्रुतकीर्ति और उर्मिला थी। माता सीता सबसे बड़ी थीं।
सीता उपनिषद में वर्णित है कि सीता उपनिषद अथर्ववेद का एक भाग है इस लिए इसे अथर्ववेदीय उपनिषद भी कहते हैं। इस उपनिषद के अनुसार देवगण तथा प्रजापति के मध्य हुए प्रश्नोत्तर में 'सीता' को शाश्वत शक्ति का आधार माना गया है। इसमें सीता को प्रकृति का स्वरूप बताया गया है।
यहां सीता शब्द का अर्थ अक्षरब्रह्म की शक्ति के रूप में हुआ है। यह नाम साक्षात 'योगमाया' का है। सीता को भगवान श्रीराम का सानिध्य प्राप्त है, जिसके कारण वे विश्वकल्याणकारी हैं। सीता-क्रिया-शक्ति, इच्छा-शक्ति और ज्ञान-शक्ति-तीनों रूपों में प्रकट होती है। परमात्मा की क्रिया-शक्ति-रूपा सीता भगवान श्री हरि के मुख से 'नाद' रूप में प्रकट हुई है।
इन्होंने बताया था लव-कुश है श्रीराम के पुत्र
जब श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया, उस समय रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि ने अपने दोनों शिष्यों लव और कुश नामक को रामायण सुनाने के लिए भेजा। राम ने एकाग्रचित होकर स्वयं के जीवन पर आधारित रामायण सुनीं। प्रतिदिन वे दोनों बीस सर्ग सुनाते थे।
इस तरह जब उत्तर कांड तक पहुंचने पर राम ने जाना कि वे दोनों राम के ही बालक हैं। राम ने सीता को कहलाया कि यदि वे निष्पाप हैं तो सभा में आकर अपनी पवित्रता प्रकट करें। वाल्मीकि सीता को लेकर गये।
वशिष्ठ ने कहा- 'हे राम, मैं वरुण का दसवां पुत्र हूं। जीवन में मैंने कभी झूठ नहीं बोला। ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। यदि मैंने झूठ बोला हो तो मेरी तपस्या का फल मुझे न मिले। मैंने दिव्य-दृष्टि से उसकी पवित्रता देख ली है।' सीता हाथ जोड़कर नीचे मुख करके बोली, 'हे धरती मां, यदि मैं पवित्र हूं तो धरती फट जाये और मैं उसमें समा जाऊं।'
जब सीता ने यह कहा तब नागों पर रखा एक सिंहासन धरती का सीना चीरकर बाहर निकला। इस सिंहासन पर पृथ्वी देवी बैठी थीं। उन्होंने सीता को उस सिंहासन पर बैठाया। सीताजी के बैठते ही वह सिंहासन धरती में समा गया। इस तरह सीता जी परमधाम की ओर चलीं गईं।
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