तो इस तरह गुरु साहिब ने खालसा पंथ की स्थापना की
मान्यता है कि बैसाखी दिन व्यास जी ने ब्रह्मा जी द्वारा रचित चार वेदों का प्रथम बार पाठ किया था। इसी दिन महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। ...और पढ़ें

अप्रैल के मध्य में मनाई जाती है बैसाखी। इस दिन सूर्य अपनी उच्च गति में होता है। मान्यता है कि इस दिन व्यास जी ने ब्रह्मा जी द्वारा रचित चार वेदों का प्रथम बार पाठ किया था। यह भी मान्यता है कि इसी दिन महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। पंजाब में खेतों में पक चुकी फसल की कटाई बैसाखी से ही आरंभ करने की सदियों पुरानी परंपरा है। कृषि प्रधान क्षेत्र में वर्ष की फसल का पककर तैयार होना विशेष महत्व रखता है। महीनों का श्रम सफल होने को उत्सव के रूप में रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर खुशियों के गीत गाते, लोक नृत्य भांगड़ा करते
मनाया जाता है। बैसाखी में पंजाब की जीवंतता सहज ही मुखर हो उठती है।
बैसाखी का सिख धर्म में बड़ा महत्व है। वर्ष 1699 में बैसाखी के ही दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने पत्र भेज कर देश के कोने-कोने से सिखों को आनंदपुर साहिब बुलाया। लगभग अस्सी हजार सिख उपस्थित हुए। सुंदर तंबू और कनात लगे दरबार में प्रात: गुरुवाणी के बाद शबद कीर्तन हुआ। इसके बाद अकस्मात गुरु गोबिंद सिंह जी मंच पर नंगी तलवार लहराते हुए ओजपूर्ण स्वर में बोले कि उनकी तलवार एक शीश चाहती है। चारोें ओर सन्नाटा छा गया। गुरु साहिब ने पुन: ललकारा, तो लाहौर के एक सिख भाई दयाराम उठे। उन्हें गुरु साहब निकट के छोटे तंबू
में ले गए। वहां से रक्तरंजित तलवार लेकर आए गुरु साहब ने फिर एक शीश की मांग की। इस बार दिल्ली के भाई धरम दास अपना शीश भेंट करने के लिए उठे।
गुरु साहिब ने फिर वापस आकर उसी तरह तीन और शीश मांगे। गुरु साहब की मांग पूरी करने के लिए बिदर के भाई साहिब चंद, जगन्नाथपुरी के भाई हिम्मत राय और द्वारिका के भाई मोहकम चंद आगे आए। कुछ समय बाद गुरु गोबिंद सिंह केसरिया वस्त्रों में सजे उन पांचों सिखों को लेकर आए। गुरु साहब ने लोहे के बाटे में पानी और बताशे डाल कर खंडे से तैयार अमृत उन पांचों सिखों को पिलाया और कहा कि ये सभी अब सिंह बन गए हैं। ये ‘पंज प्यारे’ कहलाए। गुरु साहिब ने खालसा की स्थापना की घोषणा की और सिखों से कहा कि वे भी अमृत पान कर पांच ककार धारण करें और सिंह के नाम से जाने जाएं। बैसाखी को बड़ी धूमधाम से खालसा पंथ की स्थापना के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह

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