Gandak River: बड़ा रोचक है गण्डक नदी का इतिहास, जाने क्यों इस नदी में पत्थर बनकर रह रहे हैं भगवान विष्णु
गण्डक नदी को पुराणों में बहुत ही पवित्र नदी बताया गया है। यह नदी हिमालय से निकलकर नेपाल के रास्ते कुशीनगर होकर पटना के पास गंगा में मिलती है। यह गंगा की सप्तधारा में से एक है। गंडक नदी हिमालय पर्वत श्रृंखला के धौलगिरि पर्वत के मुक्तिधाम से निकलती है।
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Gandak River: गण्डक नदी को नेपाल में सालिग्रामि या सालग्रामी और मैदानी इलाकों में नारायणी और सप्तगण्डकी भी कहा जाता है। यह नदी, नेपाल और बिहार में बहती है। इसी नदी का उल्लेख महाकाव्यों में सदानीरा के तौर पर किया गया है। यह नदी तिब्बत व नेपाल से निकलकर उत्तर प्रदेश के महराजगंज, कुशीनगर से होते हुए बिहार के सोनपुर के पास जाकर गंगा नदी में मिल जाती है।
क्या है पौराणिक कथा
महाभारत काल में घटी कई पौराणिक घटनाएं गंडक नदी से संबंधित हैं। गज और ग्राह यानी हाथी और घड़ियाल का युद्ध इसी नदी में हुआ था। इस युद्ध में गज की विनती सुनकर भगवान कृष्ण ने आकर उसकी जान बचाई थी। अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जरासंध वध के बाद पांडवों ने इसी पवित्र नदी में स्नान किया था। मान्यता है कि इस नदी में स्नान और ठाकुर जी की पूजा के बाद संसार के आवागमन से मुक्ति मिल जाती है।
भगवान विष्णु को मिला कौन-सा श्राप
भगवान विष्णु के पत्थर बनने की रोचक कथा का संबंध भी इसी गंडक नदी से है। शंखचूड़ नाम के राक्षस की पत्नी वृंदा, पतिव्रता होने के साथ ही भगवान विष्णु की परम भक्त भी थी। भगवान विष्णु ने महादेव के साथ मिलकर, छल से वृंदा का पतिव्रता धर्म नष्ट कर दिया ताकि उसके दैत्य पति का अंत किया जा सके।
इसके बाद वृंदा ने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह पत्थर बन जाएंगे और कीटों द्वारा कुतरे जाएंगे। जिसके बाद अपने भक्त के श्राप का मान रखते हुए भगवान विष्णु पत्थर के रूप में गंडक नदी में आज भी पाए जाते हैं। भगवान विष्णु के जिस शालिग्राम रूप की पूजा की जाती है वह इसी नदी में मिलता है।
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