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    Shri Ram Janm Katha: जानें कैसे हुआ था मर्यादा पुरुषोतम श्री राम का जन्म, पढ़ें ये कथा

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Wed, 05 Aug 2020 09:07 AM (IST)

    Shri Ram Janm Katha आज जागरण आध्यात्म के इस विशेष प्रस्तुति में हम आपको श्री राम की जन्म कथा के कुछ उन पहलुओं के बारे में बताएंगे जिनसे लोग अंजान हैं।

    Shri Ram Janm Katha: जानें कैसे हुआ था मर्यादा पुरुषोतम श्री राम का जन्म, पढ़ें ये कथा

    Shri Ram Janm Katha: भगवान राम का सातवां अवतार माने जाने वाले प्रभु श्री राम ने हमेशा की अधर्म पर धर्म की विजय हेतु अवतार धारण किया है। टीवी पर तो हम सभी ने रामायण देखी होगी लेकिन फिर भी कई ऐसे प्रसंग रह जाते हैं जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं होती है। कुछ ऐसी ही है प्रभु श्री राम की जन्म कथा। आज जागरण आध्यात्म के इस विशेष प्रस्तुति में हम आपको श्री राम की जन्म कथा के कुछ उन पहलुओं के बारे में बताएंगे जिनसे लोग अंजान हैं। 

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    प्रभु श्री राम की जन्मकथा:

    महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। महाराज दशरथ ने श्यामकर्ण घोड़े को चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वाने का आदेश दिया। महाराज ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को बुलावा भेजा। वो चाहते थे कि सभी यज्ञ में शामिल हों। यज्ञ का समय आने पर महाराज दशरख सभी अभ्यागतों और अपने गुरु वशिष्ठ जी समेतअपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि के साथ यज्ञ मण्डप में पधारे। फिर विधिवत यज्ञ शुभारंभ किया गया। यज्ञ की समाप्ति के बाद समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट दी गई हैं और उन्हें सादर विदा किया गया।

    यज्ञ के प्रसाद में बनी खीर को राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को दी। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों गर्भवती हो गईं। सबसे पहले महाराज दशरश की बड़ी रानी कौशल्या ने एक शिशु को जन्म दिया जो बेहद ही कान्तिवान, नील वर्ण और तेजोमय था। इस शिशु का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इस समय पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजित थे। साथ ही कर्क लग्न का उदय हुआ था। फिर शुभ नक्षत्रों में कैकेयी और सुमित्रा ने भी अपने-अपने पुत्रों को जन्म दिया। कैकेयी का एक और सुमित्रा के दोनों पुत्र बेहद तेजस्वी थे।

    महाराज के चारों पुत्रों के जन्म से सम्पूर्ण राज्य में आनन्द का माहौल था। हर कोई खुशी में गन्धर्व गान कर रहा था और अप्सराएं नृत्य करने लगीं। देवताओं ने पुष्प वर्षा की। महाराज ने ब्राह्मणों और याचकों को दान दक्षिणा दी और उन सभी ने महाराज के पुत्रों को आशीर्वाद दिया। प्रजा-जनों को महाराज ने धन-धान्य और दरबारियों को रत्न, आभूषण भेंट दी। महर्षि वशिष्ठ ने महाराज के पुत्रों का नाम रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखा।

    जैसे-जैसे ये चारों बड़े होने लगे रामचन्द्र अपने गुणों से प्रजा के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए। उनमें ऐसी विलक्षण प्रतिभा थी जिसके जरिए वो कम आयु में ही समस्त विषयों में पारंगत हो गए थे। वे हर बात में निपुण थे जैसे हर तरह के अस्त्र-शस्त्र चलाने में, हाथी-घोड़े की सवारी में आदि। वे अपने माता-पिता और गुरुजनों का बेहद आदर करते थे और उनकी सेवा में लगे रहते थे। उनके तीनों भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न भी उनका अनुसरण करते थे।  

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