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    Shri Hari Stotram Ka Path: भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है यह स्तोत्र, इस खास दिन करें इसका पाठ

    By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Thu, 01 Feb 2024 08:30 AM (IST)

    Shri Hari Stotram Ka Path गुरुवार के दिन के दिन भगवान विष्णु की पूजा शुभ माना गई है जो भक्त इस विशेष दिन पर माता लक्ष्मी के साथ श्रीहरि की पूजा करते हैं उनका जीवन खुशियों से भरा रहता है। इस खास दिन पर श्रीहरि स्तोत्र का पाठ करना भी बेहद लाभकारी माना जाता है। तो आइए यहां करते हैं -

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    Shri Hari Stotram Ka Path: श्री हरि स्तोत्र

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shri Hari Stotram Ka Path: श्रीहरि स्तोत्र का पाठ बेहद कल्याणकारी माना जाता है। इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जो जातक इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन या फिर गुरुवार के दिन करते हैं उनके घर में कभी धन का आभाव नहीं रहता है।

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    ऐसे में जो लोग चाहते हैं कि उनके जीवन की सभी परेशानियों का अंत हो जाए, तो उन्हें इस स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए। तो चलिए यहां पढ़ते हैं -

    ।।श्री हरि स्तोत्र।।

    जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं

    शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं

    नभोनीलकायं दुरावारमायं

    सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ॥

    सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं

    जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं

    गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं

    हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं

    जलान्तर्विहारं धराभारहारं

    चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं

    ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    जराजन्महीनं परानन्दपीनं

    समाधानलीनं सदैवानवीनं

    जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं

    त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    कृताम्नायगानं खगाधीशयानं

    विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं

    स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं

    निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं

    जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं

    सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं

    सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं

    गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं

    सदा युद्धधीरं महावीरवीरं

    महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    रमावामभागं तलानग्रनागं

    कृताधीनयागं गतारागरागं

    मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं

    गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    फलश्रुति

    इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं

    पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:

    स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं

    जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥

    श्रीहरि विष्णु की आरती

    ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।

    भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

    स्वामी दुःख विनसे मन का।

    सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।

    स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।

    तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

    स्वामी तुम अन्तर्यामी।

    पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

    स्वामी तुम पालन-कर्ता।

    मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

    स्वामी सबके प्राणपति।

    किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

    स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

    अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

    स्वमी पाप हरो देवा।

    श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

    स्वामी जो कोई नर गावे।

    कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

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