Shri Chandra Pujan: आज सुबह अवश्य करें चंद्र देव के इस स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी हर मुराद
सोमवार का दिन चंद्र देव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन जो भक्त उनकी पूजा करते हैं उन्हें जीवन में कभी किसी चीज के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि चंद्रमा का पूजन उन लोगों के लिए बेहद शुभ है जो मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं साथ ही एक चीज में उनका मन एकाग्र नहीं रहता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shri Chandra Pujan: सोमवार के दिन भगवान शंकर के साथ चंद्र देव की पूजा होती है। इस दिन जो साधक देवों के देव महादेव और चंद्रमा की पूजा करते हैं, उन्हें जीवन की कई मुश्किलों से छुटकारा मिलता है। साथ ही उनके संबंध उनकी मां के साथ मधुर रहते हैं।
ऐसे में जो लोग चिंता, अवसाद आदि बीमारियों से परेशान हैं, उन्हें चंद्रमा की पूजा अवश्य करनी चाहिए, साथ ही चंद्र स्तोत्र और कवच का पाठ भाव के साथ करना चाहिए, जो इस प्रकार हैं -
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।।चन्द्र स्तोत्र।।
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी, श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहु: ।
चन्द्रो मृतात्मा वरद: शशांक:, श्रेयांसि मह्यं प्रददातु देव: ।।1।।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम ।।2।।
क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणी सहित: प्रभु: ।
हरस्य मुकुटावास: बालचन्द्र नमोsस्तु ते ।।3।।
सुधायया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम ।
सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिन्धुनन्दनम ।।4।।
राकेशं तारकेशं च रोहिणीप्रियसुन्दरम ।
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुहु: ।।5।।
।।चन्द्र देव कवच।।
श्रीचंद्रकवचस्तोत्रमंत्रस्य गौतम ऋषिः । अनुष्टुप् छंदः।
चंद्रो देवता । चन्द्रप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
समं चतुर्भुजं वन्दे केयूरमुकुटोज्ज्वलम् ।
वासुदेवस्य नयनं शंकरस्य च भूषणम् ॥ १ ॥
एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम् ।
शशी पातु शिरोदेशं भालं पातु कलानिधिः ॥ २ ॥
चक्षुषी चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः ।
प्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबांधवः ॥ ३ ॥
पातु कण्ठं च मे सोमः स्कंधौ जैवा तृकस्तथा ।
करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः ॥ ४ ॥
हृदयं पातु मे चंद्रो नाभिं शंकरभूषणः ।
मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः ॥ ५ ॥
ऊरू तारापतिः पातु मृगांको जानुनी सदा ।
अब्धिजः पातु मे जंघे पातु पादौ विधुः सदा ॥ ६ ॥
सर्वाण्यन्यानि चांगानि पातु चन्द्रोSखिलं वपुः ।
एतद्धि कवचं दिव्यं भुक्ति मुक्ति प्रदायकम् ॥
यः पठेच्छरुणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ ७ ॥
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