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Sheetala Ashtami 2024: शीतला अष्टमी पर इसलिए लगता है बासी खाने का भोग, जानिए वैज्ञानिक महत्व भी

हिंदू धर्म में बासोड़ा पूजा देवी शीतला को समर्पित मानी जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से होली के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि पर मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर अग्नि नहीं जलाई जाती और न ही किसी प्रकार का ताजा भोजन पकाया जाता है। इसलिए इस दिन रात का पका हुआ खाना यानी बासी खाना खाया जाता है।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Published: Sat, 23 Mar 2024 11:03 AM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2024 11:03 AM (IST)
Sheetala Ashtami 2024 शीतला अष्टमी पर क्यों लगाया जाता है बासी खाने का भोग?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Sheetala Ashtami 2024 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार होली के 8 दिन बाद शीतला अष्टमी का व्रत किया जाता है। इसे बासोड़ा या बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व माना गया है। शीतला अष्टमी के दिन मुख्य रूप से माता शीतला की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही इस तिथि पर देवी को बासी खाने का भोग लगाया जाता है। आइए जानते हैं इसका कारण और महत्व।

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इसलिए खास है बासोड़ा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता को बासी भोजन काफी प्रिय है। इसके साथ यह भी माना गया है कि शीतला अष्टमी पर देवी शीतला की विधि-विधान करने और बासी खाने का भोग लगाने से चेचक, खसरा आदि रोगों से राहत मिल सकती है।  

जानिए वैज्ञानिक महत्व

शीतला अष्टमी का धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी माना गया है। इसके अनुसार, यह पर्व ऐसे समय पर मनाया जाता है, जब शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय होता है। ऐसे में यह समय दो ऋतुओं के संधिकाल का समय होता है।

इस दौरान खानपान का विशेष ध्यान रखना होता है, वरना स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है। माना जाता है कि इस मौसम में ठंडा खाना खाने से पाचन तंत्र अच्छा बना रहता है। ऐसे में जो लोग शीतला अष्टमी पर ठंडा खाना खाते हैं, वह लोग इस मौसम में होने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं।

कैसे मनाया जाता है यह पर्व

बासोड़ा पर्व की परम्परा के अनुसार, इस दिन घरों में भोजन पकाने के लिए अग्नि का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसलिए बासोड़ा से एक दिन पहले भोजन जैसे मीठे चावल, राबड़ी, पुए, हलवा, रोटी आदि पकवान तैयार कर लिए जाते हैं और अगले दिन सुबह बासी भोजन ही देवी शीतला को चढ़ाया जाता है। इसके बाद इसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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