Shardiya Navratri 2025: नवरात्र के तीसरे इस तरह करें मां चंद्रघंटा की पूजा, पढ़ें विधि और मंत्र
शारदीय नवरात्र की पावन अवधि मां दुर्गा के नौ स्वरूप के लिए समर्पित मानी गई है। मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप मां चंद्रघंटा हैं। माना जाता है कि नवरात्र के तीसरे दिन नियमों के अनुसार पूजा करने से मां चंद्रघंटा प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शारदीय नवरात्र की अवधि में नौ दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। आज यानी नवरात्र के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा (Devi chandraghanta puja vidhi) की पूजा-अर्चना का विधान है। माना जाता है कि देवी मां के इस स्वरूप की पूजा से साधक को बौद्धिक क्षमता का विकास होता है, साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ता है। ऐसे में चलिए पढ़ते हैं देवी चंद्रघंटा की पूजा विधि, मंत्र और प्रिय भोग।
इस तरह करें पूजा (Devi chandraghanta puja Vidhi)
नवरात्र के तीसरे दिन (Navratri day 3) सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवित्त हो जाएं। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल का छिड़काव करें। अब मां को गंगाजल से स्नान कराएं। पूजा में देवी को धूप, दीप, चंदन, सिंदूर, पीले व लाल रंग के फूल आदि अर्पित करें। पूजा में अब मां चंद्रघंटा के मंत्र "ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः" का जप करें। अंत में दीपक जलाकर देवी मां की आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद बांटें।
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अर्पित करें ये चीजें
आप नवरात्र के तीसरे दिन की पूजा में देवी चंद्रघंटा की पूजा में उन्हें केसर मिलाकर खीर का भोग लगा सकते हैं। मां को केसर की खीर प्रिय मानी गई है। इसके साथ ही पूजा में उन्हें लौंग, इलायची, पंचमेवा और दूध से बनी मिठाई भी अर्पित की जा सकती है। इसके साथ ही आप देवी की कृपा प्राप्ति के लिए उन्हें कमल, गुलाब, बेला या चमेली के फूल भी अर्पित कर सकते हैं।

मां चंद्रघंटा के मंत्र -
1. ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः।
2. या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
3. प्रार्थना मंत्र -
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
4. मां चन्द्रघण्टा ध्यान मंत्र -
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
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