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    Shardiya Navratri 2024 Day 3: नवरात्र के तीसरे दिन करें इन मंत्रों व चालीसा का पाठ, कृपा बरसाएंगी देवी मां

    Updated: Sat, 05 Oct 2024 08:08 AM (IST)

    ऐसा मान जाता है कि नवरात्र (Shardiya Navratri 2024) के प्रत्येक दिन नवदुर्गा की पूजा-अर्चना से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं। ऐसे में नवरात्र के तीसरे दिन यानी 05 अक्टूबर को देवी चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाएगी। आप पूजा के दौरान ये कार्य जरूर करें ताकि देवी चंद्रघंटा के साथ-साथ माता दुर्गा की भी कृपा आपके ऊपर बनी रहे।

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    devi chandraghanta puja नवरात्र के तीसरे दिन करें इन मंत्रों और चालीसा का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। देवी चंद्रघंटा भी मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं, जिसकी पूजा-अर्चना से साधक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है। ऐसे में आप नवरात्र के तीसरे दिन की पूजा में माता चंद्रघंटा के मंत्रों का जाप कर विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसी के साथ नवरात्र के प्रत्येक दिन दुर्गा चालीसा का पाठ भी करना चाहिए। तो चलिए पढ़ते हैं मां चंद्रघंटा के मंत्र और दुर्गा चालीसा।

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    मां चंद्रघंटा के मंत्र

    या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

    पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

    प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

    मां चंद्रघंटा बीज मंत्र - ऐं श्रीं शक्तयै नम:

    स्तुति मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

    प्रार्थना मंत्र - पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

    प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

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    श्री दुर्गा चालीसा

    ।। दोहा।।

    या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।

    ।। चौपाई।।

    नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

    नमो नमो अंबे दुःख हरनी।।

    निराकार है ज्योति तुम्हारी ।

    तिहूं लोक फैली उजियारी।।

    शशि ललाट मुख महा विशाला।

    नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।

    रूप मातुको अधिक सुहावे।

    दरश करत जन अति सुख पावे ।।

    तुम संसार शक्ति मय कीना ।

    पालन हेतु अन्न धन दीना ।।

    अन्नपूरना हुई जग पाला ।

    तुम ही आदि सुंदरी बाला ।।

    प्रलयकाल सब नासन हारी।

    तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।।

    शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं।

    ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावै।।

    रूप सरस्वती को तुम धारा ।

    दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।

    धरा रूप नरसिंह को अम्बा ।

    परगट भई फाड़कर खम्बा ।।

    रक्षा करि प्रहलाद बचायो ।

    हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।

    लक्ष्मी रूप धरो जग माही।

    श्री नारायण अंग समाहीं । ।

    क्षीरसिंधु मे करत विलासा ।

    दयासिंधु दीजै मन आसा ।।

    हिंगलाज मे तुम्हीं भवानी।

    महिमा अमित न जात बखानी ।।

    मातंगी धूमावति माता।

    भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ।।

    श्री भैरव तारा जग तारिणी।

    क्षिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ।।

    केहरि वाहन सोहे भवानी।

    लांगुर वीर चलत अगवानी ।।

    कर मे खप्पर खड्ग विराजै ।

    जाको देख काल डर भाजै ।।

    सोहे अस्त्र और त्रिशूला।

    जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।

    नगर कोटि मे तुमही विराजत।

    तिहुं लोक में डंका बाजत ।।

    शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।

    रक्तबीज शंखन संहारे ।।

    महिषासुर नृप अति अभिमानी।

    जेहि अधिभार मही अकुलानी ।।

    रूप कराल काली को धारा।

    सेन सहित तुम तिहि संहारा।।

    परी गाढ़ संतन पर जब-जब।

    भई सहाय मात तुम तब-तब ।।

    अमरपुरी औरों सब लोका।

    जब महिमा सब रहे अशोका ।।

    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

    तुम्हे सदा पूजें नर नारी ।।

    प्रेम भक्त से जो जस गावैं।

    दुःख दारिद्र निकट नहिं आवै ।।

    ध्यावें जो नर मन लाई ।

    जन्म मरण ताको छुटि जाई ।।

    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

    योग नही बिन शक्ति तुम्हारी ।।

    शंकर आचारज तप कीन्हों ।

    काम क्रोध जीति सब लीनों ।।

    निसदिन ध्यान धरो शंकर को।

    काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।

    शक्ति रूप को मरम न पायो ।

    शक्ति गई तब मन पछितायो।।

    शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

    जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।

    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।

    दई शक्ति नहि कीन्ह विलंबा ।।

    मोको मातु कष्ट अति घेरों ।

    तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ।।

    आशा तृष्णा निपट सतावै।

    रिपु मूरख मोहि अति डरपावै ।।

    शत्रु नाश कीजै महारानी।

    सुमिरौं एकचित तुम्हें भवानी ।।

    करो कृपा हे मातु दयाला।

    ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ।।

    जब लगि जियौं दया फल पाऊं।

    तुम्हरौ जस मै सदा सुनाऊं ।।

    दुर्गा चालीसा जो गावै ।

    सब सुख भोग परम पद पावै।।

    देवीदास शरण निज जानी।

    करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।

    ।। दोहा।।

    शरणागत रक्षा कर, भक्त रहे निःशंक ।

    मैं आया तेरी शरण में, मातु लीजिए अंक।।

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