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    Shani Kavach: शनि प्रकोप से बचाएगा ये कार्य, इस खास दिन करें इसका पालन

    Updated: Sat, 06 Jul 2024 08:52 AM (IST)

    शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र दिन जो साधक उनकी पूजा करते हैं और उनके लिए कठिन उपवास का पालन करते हैं उन्हें कभी किसी चीज के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है। इसके साथ ही कुंडली से शनि का बुरा प्रभाव भी कम होता है। ऐसे में शनिवार के व्रत का पालन अवश्य करें।

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    Shani Kavach: शनि कवच का पाठ -

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शनि भगवान की पूजा को ज्योतिष शास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। शनिवार के दिन शनि देव की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र दिन जो साधक उनकी पूजा करते हैं और उनके लिए कठिन उपवास का पालन करते हैं, उन्हें कभी किसी चीज के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है।

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    इसके साथ ही कुंडली से शनि का बुरा प्रभाव भी कम होता है। इसके अलावा शनिवार की शाम 'शनि कवच' का पाठ (Shani Kavach) बेहद लाभकारी माना गया है, तो चलिए यहां पढ़ते हैं -

    ।।शनि कवच।।

    विनियोग - अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,

    शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

    नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।

    चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

    श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।

    कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

    कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

    शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

    ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।

    नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

    नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।

    स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

    स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।

    वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

    नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।

    ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

    पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।

    अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

    इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।

    न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

    व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

    कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

    अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

    कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

    इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।

    जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।