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    Shani Dev: नाराज शनि देव को करना है प्रसन्न, तो शनिवार को करें ये काम

    शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस शुभ दिन पर शनि देव की पूजा भाव के साथ करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही शनि देव प्रसन्न होते हैं। वहीं जिन लोगों की कुंडली में शनि की दशा खराब चल रही है उन्हें शनिवार के दिन शनि स्तुति का पाठ अवश्य करना चाहिए।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 17 Aug 2024 07:00 AM (IST)
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    Shani Dev: शनि स्तुति का पाठ ऐसे करें -

     धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में शनि देव की पूजा का खास महत्व है। शनिवार का दिन न्याय के देवता की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शनि की पूजा करने से व्यक्ति का सोया हुआ भाग्य भी खुल जाता है। इसलिए सुबह उठकर पवित्र स्नान करें। इसके पश्चात शाम के समय सरसों के तेल का दीपक जलाएं। फिर शनि देव के वैदिक मंत्रों का जाप करें।

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    इसके अलावा 'शनि स्तुति' का पाठ करें और आरती से पूजा का समापन करें, जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें (Shani Dev) शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही जीवन की समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

    ।।शनि देव पौराणिक मंत्र।।

    ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

    छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

    ।।शनिदेव की स्तुति।।

    नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।

    नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥

    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

    नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥

    नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।

    नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥

    नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥

    नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।

    सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥

    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।

    नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥

    तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।

    नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥

    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।

    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।

    त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥

    प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।

    एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥

    ॥ शनि देव की आरती॥

    ''जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

    सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥

    जय जय श्री शनि देव....

    श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

    नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥

    जय जय श्री शनि देव....

    क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।

    मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥

    जय जय श्री शनि देव....

    मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

    लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥

    जय जय श्री शनि देव....

    जय जय श्री शनि देव....

    देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।

    विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

    जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

    जय जय श्री शनि देव''....

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