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    Shani Dev Puja: आज के दिन करें इस कवच का पाठ, समाप्त होंगे सभी दुख

    By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Sat, 09 Dec 2023 09:08 AM (IST)

    Shani Dev Puja शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा का विधान है। मान्यता है कि शनिदेव व्यक्ति के कर्मों के हिसाब से उसे फल और दंड देते हैं। शनिवार का दिन शनिदेव की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन सच्चे भाव के साथ न्याय की देवता की पूजा करते हैं वे उनकी सभी मुराद पूरी करते हैं।

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    Shani Dev Puja: शनि कवच का करें पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Dev Puja: ज्योतिष शास्त्र में शनि भगवान को क्रूर ग्रह माना गया है। कहा जाता है, वे व्यक्ति के कर्मों के हिसाब से उसे फल और दंड देते हैं। शनिवार का दिन शनिदेव की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन सच्चे भाव के साथ न्याय की देवता की पूजा करते हैं, वे उनकी सभी मुराद पूरी करते हैं।

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    मान्यताओं के अनुसार, अगर कोई साधक शनि कवच का पाठ करता है, शनिदेव उसपर कभी अपनी बुरी दृष्टि नहीं डालते हैं। ऐसे में हर किसी को इस कल्याणकारी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए, जो इस प्रकार है-

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    शनि कवच पाठ

    अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः,

    अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,

    शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

    नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।

    चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

    श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।

    कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

    कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

    शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

    ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।

    नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

    नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।

    स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

    स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।

    वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

    नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।

    ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

    पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।

    अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

    इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।

    न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

    व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

    कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

    अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

    कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

    इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।

    जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।

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    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेंगी।