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    ज्ञान बताता है धर्म-अधर्म का फर्क

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    Updated: Wed, 30 Jan 2013 01:00 PM (IST)

    कुंभ के पावन पर्व पर संगम तीरे शांति की खोज में लाखों लोग दिन-रात तप कर रहे हैं। इसमें विदेशियों की संख्या भी हजारों में है, जिन्हें संगम में डुबकी लगाते देखना हर देशवासी को सुकून देता है। वह गर्व से कहते हैं कि देखो हमारे धर्म का अनुसरण विदेशों में भी हो रहा है। लेकिन जिस जल में वह डुबकी लगाते हैं उसे देखकर उनकी खुशी गायब हो जाती है।

    कुंभ के पावन पर्व पर संगम तीरे शांति की खोज में लाखों लोग दिन-रात तप कर रहे हैं। इसमें विदेशियों की संख्या भी हजारों में है, जिन्हें संगम में डुबकी लगाते देखना हर देशवासी को सुकून देता है। वह गर्व से कहते हैं कि देखो हमारे धर्म का अनुसरण विदेशों में भी हो रहा है। लेकिन जिस जल में वह डुबकी लगाते हैं उसे देखकर उनकी खुशी गायब हो जाती है। गंगा का जल इतना दूषित है कि उसका रंग कभी लाल होता है कभी काला। लाख कोशिशों के बाद भी गंगा की दशा नहीं बदली। इसको लेकर संतों के साथ आम जनमानस भी चिंतित नजर आता है। लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है तो सब पीछे हट जाते हैं। अग्नि अखाड़ा के सचिव व श्रीमहंत स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी इसके पीछे लोगों में समर्पण का अभाव बताते हैं। पेश है शरद द्विवेदी से बातचीत के प्रमुख अंश।

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    अग्नि अखाड़ा के सचिव एवं श्रीमहंत स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने 2003 में स्वामी गोपालानंद से दीक्षा ली। उन्होंने वेद, पुराण, भागवत, कर्मकांड के संरक्षण के लिए देश एवं विदेशों में अभियान चलाया। बीहड़ व पिछड़े इलाकों में हजारों धार्मिक अनुष्ठान कराकर गलत मार्ग पर चल रहे लोगों को धार्मिक रास्ते पर लेकर आए। इनके प्रयास से सैकड़ों लोगों का ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि उन्होंने बंदूक छोड़कर समाज हित में कार्य करना शुरू कर दिया। स्वामी कैलाशानंद का लक्ष्य जाति-धर्म की कट्टरता से परे मानव एकता, प्रेम व भाईचारा का भारत बनाना है। अपने इस अभियान में वह निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। उनके अभियान में हिंदू के साथ मुस्लिम व अन्य धर्म के अनुयायी शामिल हैं।

    धर्म और अधर्म में क्या फर्क है?

    शास्त्रों में जिसका अनुसरण करने की सीख दी गई है वह धर्म है जबकि जिससे दूर रहने को कहा गया है वही अधर्म है। हमारे जिस कार्य से मानव का भला होता है वह धर्म माना गया है, दूसरों का अहित करने वाले कार्य से बड़ा कोई अधर्म नहीं है। ज्ञान वह माध्यम है जिससे मानव के अंदर त्याग, समर्पण और आस्था की भावना जागृत होती है। इससे वह धर्म व अधर्म में स्वत: फर्क जानता है और सन्मार्ग पर चलता है।

    सनातन धर्म की क्षति के पीछे क्या कारण हैं?

    सनातन धर्म पर हमेशा कुठाराघात होता रहा है। आर्यो का प्रभुत्व बढ़ने पर आदिगुरु शंकराचार्य ने अपनी निष्ठा और आध्यात्मिक शक्ति से उन्हें पराजित कर सनातन धर्म की रक्षा की। उन्होंने देश के चार कोने में चार पीठों की स्थापना कर अखाड़ों को संगठित किया। इसका मकसद सिर्फ एक था सनातन धर्म की रक्षा व विस्तार। वर्तमान समय में हिंदू धर्म के सामने कई चुनौतियां हैं, हिंदू धर्मातरण, गोहत्या, गंगा का प्रदूषण, वेद-पुराणों का अस्तित्व खतरे में पड़ना सनातन धर्म के लिए कलंक है, जिसे सामूहिक प्रयास से दूर किया जा सकता है। रही बात सनातन धर्म के पीछे जाने की तो मैं इसे उचित नहीं मानता। हमारे धर्म को समाप्त करने के लिए कई बार कुचक्त्र रचा गया, मंदिर तोड़े गए, सामूहिक धर्मातरण भी कराया इसके बावजूद सनातन धर्म खत्म नहीं हुआ। इस समय जो चुनौतियां हैं वह भी दूर हो जाएंगी। आपको यह भी देखना चाहिए कि सनातन धर्म के अनुयायियों की संख्या देश के साथ विदेशों में भी बढ़ी है।

    देश में संतों की संख्या बढ़ने के बाद भी हिंदुओं का धर्मातरण क्यों हो रहा है?

    संतों की संख्या बढ़ा कर हम धर्म की रक्षा नहीं कर सकते। इसके लिए ज्ञान का होना आवश्यक है। आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने ज्ञान व तपस्या के बल पर सनातन धर्म को न सिर्फ बचाया बल्कि उसका विस्तार भी किया। स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान से पूरी दुनिया को चकित कर दिया। ज्ञान से भारत विश्‌र्र्वगुरु बना। यही वह माध्यम है जिससे पूरी दुनिया को झुकाने के साथ उन्हें अपने आधीन किया जा सकता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे देश में शंकराचार्य, महामंडलेश्‌र्र्वर, मंडलेश्‌र्र्वरों की संख्या तो बढ़ी, परंतु आध्यात्मिक ज्ञान, चेतना, साधना का अभाव लगातार बना है। इससे हम न तो धर्म की रक्षा कर पा रहे हैं न ही लोगों को कहीं जाने से रोकने में। इससे सनातन धर्म का हनन हुआ है, बावजूद इसे मैं क्षणिक समस्या मानता हूं, जो हमसे दूर गए हैं वह पुन: वापस आ जाएंगे।

    युवा पीढ़ी का पाश्चात्य संस्कृति के प्रति झुकाव क्यों बढ़ रहा है?

    यह चिंता का विषय है। आज लोगों की सोच व काम करने का दायरा काफी छोटा हो गया है। वह भौतिकतावादी सुविधाओं के पीछे भाग रहे हैं। उन्होंने अपनी जरूरत इतनी अधिक बढ़ा ली है कि उसे पूरा करने में दिन रात लगे रहते हैं। धर्म-अध्यात्म व परिवार से उनकी दूरी बढ़ती जाती है। सही दिशा-निर्देश न मिलने के कारण युवाओं का पग डगमगा जाता है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रति उनका झुकाव उसी के तहत होता है। लेकिन वह क्षणिक होता है, एक समय आता है उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, वह शांति की खोज में मठ-मंदिरों में मत्था टेकते नजर आते हैं।

    गंगा-गाय का अस्तित्व खतरे में है, संत इसको लेकर क्या कर रहे हैं?

    यह पूरे समाज का दोष है। गंगा के प्रति लोगों में भाव की कमी है। वह गंगा व गाय की पूजा तो करते हैं परंतु उनके प्रति श्रद्धा, समर्पण व निष्ठा का अभाव नजर आता है। इसके कारण गंगा दूषित हो रही हैं और गाय काटी जा रही हैं। एक भगीरथ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लेकर आए, हम उसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं। आजादी के बाद राजनेताओं ने सनातन संस्कृति को संरक्षित करने के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाया। इसको लेकर न तो समाज ने कुछ सोचा और न ही सरकार ने। राजनीतिक दलों ने समय-समय पर अपने हित के लिए गंगा का उपयोग किया। यह परंपरा अब बदलने की जरूरत है अन्यथा आने वाले दिनों में समस्या विकराल हो जाएगी। संपूर्ण मानवजाति को इसके लिए संकल्प लेना होगा। गंगातट पर बसे लोगों को गंगा प्रदूषण के खिलाफ कार्य करना होगा, सरकार को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए गंगा व गाय के खिलाफ काम करने वालों के खिलाफ कड़ा कदम उठाना चाहिए। रही बात संतों की तो हम लोगों को जागृत कर रहे हैं।

    इस समस्या के पीछे प्रमुख कारण क्या है?

    देखें, गंगा और गोमाता हमारी निष्ठा व भक्ति का केंद्र हैं। वह हमारी संस्कृति हैं। गंगा और गाय के प्रति लोगों के अंदर आस्था तो है, लेकिन समर्पण, निष्ठा का अभाव होने से दोनों का अस्तित्व खतरे में है। हम लोगों की भावनाओं को जगाकर उसे बाहर लाने में लगे हैं। खुशी की बात यह है कि इसका अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है।

    सामाजिक विकृतियां बढ़ने का क्या कारण है?

    सामाजिक व मानसिक विकृतियों का प्रमुख कारण मैं दूषित आहार को मानता हूं। शुद्ध आहार से हमारे अंदर अच्छे विचार आते हैं, जिसका असर काम व रहन-सहन पर पड़ता है। इससे इंसान के अंदर सत्यक्त्रिया की उत्पत्ति होती है। दूषित आहार का सेवन करने से मन पर उसका गलत प्रभाव पड़ता है। मैं जहां भी जाता हूं वहां लोगों को ताजा, स्वच्छ और शाकाहारी भोजन करने के लिए प्रेरित करता हूं।

    आज हर प्रमुख संत किसी न किसी राजनीतिक दल से प्रभावित नजर आता है, ऐसा क्यों?

    अनादि काल से संत राजनेताओं को दिशा देते आ रहे हैं। प्रजातंत्र में विद्वत परिषद थी, जिनके दिशा-निर्देश पर राजनेता अपना कदम उठाते थे। वह परंपरा आज भी चल रही है। संत अपनी तपस्या से जागृत शक्ति के माध्यम से नेताओं को उत्तम मार्ग दिखाते हैं जिसे अपनाकर वह समाज का हित करते हैं। परंतु महात्मा कभी राजनेता नहीं बनते। गंगा प्रदूषण आज प्रमुख समस्या है मैंने इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बात की, उन्होंने तत्काल पूरे प्रदेश में गंगा में गिर रहे सारे नालों व फैक्ट्रियों को बंद कराया। रही बात नेताओं के संतों से संबंध की तो इसमें कोई बुराई नहीं है। जैसे हर इंसान की श्रद्धा का केंद्र अलग-अलग देवी-देवता होते हैं। वह उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत व पूजन करते हैं, उसी प्रकार राजनेताओं की भी अलग-अलग संतों पर श्रद्धा रहती है। इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे संतों से उनका कोई द्वेष होता है, संतों के लिए भी हर राजनेता बराबर हैं।

    अखाड़ों में विवाद क्यों हो रहा है?

    हमारे बीच कोई विवाद नहीं है। कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाती, और राय अलग-अलग रहती है, लेकिन वह भी सनातन धर्म के हित में होता है। संतों का अपना कोई व्यक्तिगत मुद्दा नहीं होता, वह सिर्फ समाज के लिए जीते हैं, इसलिए उनमें आपस में कभी कोई विवाद हो ही नहीं सकता।

    असली-नकली शंकराचार्य का मुद्दा कितना उचित है?

    मैं इसे सनातन धर्म के लिए उचित नहीं मानता। शंकराचार्य की अपनी गरिमा है, जिसका सबको पालन करना चाहिए। आदि शंकराचार्य ने चार पीठ की स्थापना की थी, जिसका पालन होना चाहिए। शंकराचार्यो की फौज खड़ी करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि इससे सनातन धर्म का कोई हित होने वाला नहीं है।

    आगे आपकी क्या योजना है?

    सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार। वेद, पुराण, संस्कृत, गंगा व गाय की रक्षा करना मेरा प्रमुख उद्देश्य है। इसके लिए देशव्यापी अभियान चला रहा हूं, जगह-जगह धर्म सभाएं चल रही हैं। प्रवचन के माध्यम से लोगों की अंतरात्मा जागृत कर रहा हूं ताकि वह सच्चाई के मार्ग पर आगे बढ़ें। लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाकर पाश्चात्य संस्कृति का विरोध, सनातन संस्कृति व वैदिक धर्म के लिए चल रहे प्रचार-प्रसार के कार्यक्त्रम को आने वाले दिनों में विस्तार दूंगा।

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