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    Sawan Shivratri 2024: सावन शिवरात्रि पर करें इस स्तोत्र का पाठ, पूर्ण होंगी सभी इच्छाएं

    Updated: Thu, 01 Aug 2024 03:40 PM (IST)

    सावन के दौरान आने वाली मासिक शिवरात्रि बेहद शुभ मानी जाती है। यह भगवान शिव की पूजा के लिए अत्यधिक कल्याणकारी मानी जाती है। इस दिन शिव भक्त व्रत रखते हैं और भगवान शिव की भाव के साथ पूजा करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार यह श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह 02 अगस्त को मनाई जाएगी।

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    Sawan Shivratri 2024: शिवालय दर्शन स्तोत्र का पाठ -

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन शिवरात्रि, जिसे श्रावण शिवरात्रि या मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। यह हर साल श्रावण माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस शुभ अवसर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही घर में धन की कमी नहीं रहती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल सावन की मासिक शिवरात्रि 02 अगस्त को मनाई जाएगी।

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    ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस दौरान ''शिवालय दर्शन स्तोत्र'' का पाठ करते हैं और शिवलिंग पर बेलपत्र और जल चढ़ाते हैं, उन्हें शिव कृपा सदैव के लिए प्राप्त होती है।

    ।।शिवालय दर्शन स्तोत्र।।

    श्री नन्दिकेश्वर प्रार्थना

    नन्दिकेश महाभाग शिवध्यानपरायण।

    गौरीशङ्करसेवार्थं अनुज्ञां दातुमर्हसि ॥

    ।।श्री विघ्नेश्वरध्यानम् ।।

    गजाननं भूतगणादिसेवितं

    कपित्थजम्बूफलसारभक्षितम्।

    उमासुतं शोकविनाशकारणं

    नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम् ॥१॥

    अगजाननपद्मार्कं गजाननमहर्निशम्

    अनेकदन्तं भक्तानां एकदन्तमुपास्महे ॥२॥

    वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ

    अविघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥३॥

    ।।श्री शिवध्यानम्।।

    वन्दे शंभुमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं

    वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम्।

    वन्दे सूर्यशशाङ्कवह्निनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं

    वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शंकरम्॥१॥

    हालास्यनाथाय महेश्वराय

    हालाहलालंकृतकन्धराय।

    मीनेक्षणाया पतये शिवाय

    नमोनमः सुन्दरताण्डवाय॥२॥

    मृत्युञ्जयाय रुद्राय नीलकण्ठाय शंभवे।

    अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नमः ॥३॥

    ।।श्री दक्षिणामूर्तिध्यानम्।।

    गुरवे सर्वलोकानां भिषजे भवरोगिणाम्।

    निधये सर्वविद्यानां दक्षिणामूर्तये नमः ॥१॥

    अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।

    चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥

    ।।श्री सुब्रह्मण्यध्यानम्।।

    द्विष्ड्भुजं षण्मुखमंबिकासुतं कुमारमादित्यसहस्रसन्निभम्।

    वन्दे मयूरासनमध्यशोभितं सेनान्यमद्याहमभीष्टसिद्धये ॥१॥

    षडाननं कुङ्कुमरक्तवर्णं महामतिं दिव्यमयूरवाहनम्।

    रुद्रस्य सूनुं सुरसैन्यनाथं गुहं सदा शरणमहं प्रपद्ये ॥२॥

    ।। श्री चण्डिकेश्वरध्यानम्।।

    नीलक्ण्ठपदांभोजपरिस्फुरितमानस।

    शंभो: सेवाफलं देहि चण्डेश्वर नमोऽस्तु ते ॥

    ।।श्री भैरवध्यानम्।।

    रक्तज्वालजटाधरं सुविमलं रक्तांगतेजोमयं,

    धृत्वा शूलकपालपाशडमरून् लोकस्यरक्षाकरम्।

    निर्वाणं शुनवाहनं त्रिनयनं आनन्दकोलाहलं,

    वन्दे भूतपिशाचनाथवटुकं क्षेत्रस्य पालं शिवम् ॥

    ।।श्री नवग्रहप्रार्थना।।

    नमः सूर्याय सोमाय मङ्गलाय बुधाय च ।

    गुरुशुक्रशनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः ॥

    ।।श्री नटराजध्यानम्।।

    कृपासमुद्रं सुमुखं त्रिनेत्रं जटाधरं पार्वतिवामभागम्।

    सदाशिवं रुद्रमनन्तरूपं चिदंबरेशं हृदि भावयामि ॥१॥

    आनन्दनृत्तसमये नटनायकस्य पादारविन्दमणिनूपुरशिञ्जितानि।

    आनन्दयन्ति मदयन्ति विमोहयन्ति रोमाञ्चयन्ति नयनानि कृतार्थयन्ति ॥२॥

    गौरीवल्लभ कामारे काळकूटविषाशन। मामुद्धर भवाम्बोधेः त्रिपुरघ्नान्तकान्तक॥३॥

    महादेवं महेशानं महेश्वरमुमापतिं महासेनगुरुं वन्दे महाभयनिवारणम् ॥४॥

    ।।श्री अम्बिकाध्यानम्।।

    अष्टौ भुजाङ्गीं महिषस्यमर्द्दिनीं सशंखचक्रां शरशूलधारिणीम्।

    तां दिव्ययोगीं सहजातवेदसीं दुर्गां सदा शरणमहं प्रपद्ये ॥१॥

    अम्बा शम्बरवैरितातभगिनी श्रीचन्द्रबिम्बानना, बिम्बोष्ठी स्मितभाषिणी शुभकरी कादंबवाट्याश्रिता।

    ह्रींकाराक्षरमन्त्रमध्यसुभगा श्रोणीनितंबान्विता मामंबापुरवासिनी भगवती हेरंबमातावतु ॥२॥

    सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्र्यंबके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३॥

    अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥४॥

    शिवभजनम् शंभो शंकर साम्ब शंकर हर हर शंकर शिव शिव शंकर ।

    शिव शिव भव भव शरणं शम्भो भवतु सदा तव स्मरणम्॥१॥

    गंगाधर चन्द्रचूड शम्भो जगन्मङ्गलनीड।

    भस्मोद्धूलितदेह शम्भो परपुरुष वृषवाह ॥२॥

    पञ्चानन फणिभूषण शम्भो परमपुरुष मुनिवेष।

    सकलागमसंवेद्य शंभो सर्वमुनिजनमानसहृद्य॥३॥

    आनन्दनटनविनोद शम्भो सच्चिदानन्द विगलितचेतः।

    कैलासाचलवास शंभो श्रीमन्नारायणश्रितदेव ॥४॥

    शम्भो महादेव साम्बसदाशिव साम्बसदाशिव शम्भो महादेव साम्बसदाशिव।

    शम्भो महादेव साम्बसदाशिव॥५॥

    सर्वलोकशरण्याय शंकराय महात्मने।

    पार्वतीप्राणनाथाय पञ्चवक्त्राय मङ्गलम्॥६॥

    मन्माता शशिशेखरो मम पिता मृत्युञ्जयो मद्गुरुः न्यग्रोधद्रुममूलवासरसिको मत्सोदरः शंकरः।

    मद्बन्धुस्त्रिपुरान्तको मम सखा कैलासशैलाधिपः मत्स्वामी परमेश्वरो मम गतिः सम्बः शिवो नेतरः ॥७॥

    महाबलिमुखाः सर्वे शिवाज्ञापरिपालकाः ।

    मया निवर्तिता यूयं गच्छतेश्वरसन्निधौ ॥८॥

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