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    Pradosh Vrat 2025: सावन के पहले प्रदोष व्रत पर जपें ये चमत्कारी मंत्र, आर्थिक तंगी से मिलेगी मुक्ति

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 21 Jul 2025 06:11 PM (IST)

    सावन माह के पहले प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat 2025) पर ध्रुव योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव और जगत की देवी मां पार्वती की पूजा करने से साधक पर महादेव की कृपा बरसेगी। साथ ही साधक की हर एक मनोकामना पूरी होगी।

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    Pradosh Vrat 2025: भगवान शिव को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन माह का पहला प्रदोष व्रत मंगलवार 22 जुलाई को मनाया जाएगा। यह पर्व हर माह कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर देवों के देव महादेव और मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त त्रयोदशी तिथि का व्रत रखा जाता है।

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    प्रदोष व्रत का फल दिन अनुसार मिलता है। सावन माह का पहला प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन पड़ रहा है। इसके लिए यह भौम प्रदोष व्रत कहलाएगा। इस व्रत को करने से आर्थिक तंगी दूर होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृ्द्धि होती है।

    यह भी पढ़ें- Sawan 2025: श्रावण में शिव की पूजा से पूर्ण होती है हर मनोकामना

    अगर आप भी आर्थिक विषमता दूर करना चाहते हैं, तो सावन माह के पहले प्रदोष व्रत पर पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें। इन मंत्रों के जप से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। भगवान शिव की कृपा से हर मनोकामना यथाशीघ्र पूरी होती है।

    आइए जानते हैं-

    शिव मंत्र (Shiv Mantra)

    1. ॐ नमो भैरवाय स्वाहा।

    2. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन।

    3. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शत्रु नाशं कुरु।

    4. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय तंत्र बाधाम नाशय नाशय।

    5. चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।

    अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्॥

    गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।

    शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः॥

    गंगाधरः शिरः पातु भालं अर्धेन्दुशेखरः।

    नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषण॥

    घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः।

    जिह्वां वागीश्वरः पातु कंधरां शितिकंधरः॥

    श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः।

    भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्॥

    हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः।

    नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः॥

    सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः।

    उरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः॥

    जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।

    चरणौ करुणासिंधुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः॥

    एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।

    स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्॥

    ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।

    दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्॥

    अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः।

    भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्॥

    इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत्।

    प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत॥

    6. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

    उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

    परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

    सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

    वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

    हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

    एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।

    7. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

    उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

    8. नमामिशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं।।

    9. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

    10. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

    शिव बिल्वाष्टकम्

    त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं।

    त्रिजन्म पापसंहारम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्चिद्रैः कोमलैः शुभैः।

    तवपूजां करिष्यामि ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    कोटि कन्या महादानं तिलपर्वत कोटयः।

    काञ्चनं क्षीलदानेन ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनं।

    प्रयागे माधवं दृष्ट्वा ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    इन्दुवारे व्रतं स्थित्वा निराहारो महेश्वराः।

    नक्तं हौष्यामि देवेश ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    रामलिङ्ग प्रतिष्ठा च वैवाहिक कृतं तधा।

    तटाकानिच सन्धानम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    अखण्ड बिल्वपत्रं च आयुतं शिवपूजनं।।

    कृतं नाम सहस्रेण ऐकबिल्वं शिवार्पणं।

    उमया सहदेवेश नन्दि वाहनमेव च।।

    भस्मलेपन सर्वाङ्गम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    सालग्रामेषु विप्राणां तटाकं दशकूपयो:।

    यज्नकोटि सहस्रस्च ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    दन्ति कोटि सहस्रेषु अश्वमेध शतक्रतौ।

    कोटिकन्या महादानम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    बिल्वाणां दर्शनं पुण्यं स्पर्शनं पापनाशनं।

    अघोर पापसंहारम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    सहस्रवेद पाटेषु ब्रह्मस्तापन मुच्यते।

    अनेकव्रत कोटीनाम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    अन्नदान सहस्रेषु सहस्रोप नयनं तधा।

    अनेक जन्मपापानि ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    बिल्वस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेश्शिव सन्निधौ।

    शिवलोकमवाप्नोति ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    ।।ऋणमोचन मंगल स्तोत्र।।

    ''मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

    स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।

    लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

    धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।

    अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

    व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।

    एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

    ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।

    धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

    कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।

    स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

    न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।

    अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

    त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।

    ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

    भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।

    अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

    तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्।।

    विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

    तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।

    पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

    ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।

    एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

    महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा''।।

    इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

    दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र

    विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।

    कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।

    गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भक्तप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।

    ज्योतिर्मयाय गुणनामसुकृत्यकाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    चर्मांबराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।

    मंजीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय ।

    आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीविलासभवनाय महेश्वराय पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय ।

    शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।

    नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    रामप्रियाय राघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।

    पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।

    मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    वसिष्ठेनकृतं स्तोत्रं सर्व दारिद्‌र्यनाशनम् ।

    सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ॥

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