Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Sawan 2025: दक्षिण का कैलास है दूसरा ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन, शिखर दर्शन से नहीं होता पुनर्जन्म

    Updated: Tue, 15 Jul 2025 06:06 PM (IST)

    आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga history) भगवान शिव और पार्वती का संयुक्त रूप है। इसे दक्षिण का कैलास भी कहा जाता है। श्रीशैल शिखर का दर्शन करने से पुनर्जन्म नहीं होता। मंदिर की महिमा रामायण और पुराणों में वर्णित है। मान्यता है कि प्रलय के बाद भी यह स्थान बना रहेगा। यहां ऋषि-मुनियों और असुरों ने भी साधना की है।

    Hero Image
    महाभारत के अनुसार, श्रीशैल पर्वत पर भोलेनाथ का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। देश में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से दूसरा ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन है, जो आंध्र प्रदेश में श्रीशैलम में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के तट पर एक पहाड़ी पर स्थित है। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। पहला ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वेद और ऋषि भी इस बात का समर्थन करते हैं कि श्रीशैलम जैसा कोई तीर्थ नहीं है। इसलिए मल्लिकार्जुन स्वामी की पूजा करने वाले को मुक्ति मिलती है। मल्लिकार्जुन स्वामी की पूजा करने वाले के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है। शिव और पार्वती का संयुक्त रूप है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, जिसमें मल्लिका देवी पार्वती और अर्जुन यानी महादेव हैं।

    श्रीशैल खंडम् में लिखा है कि ‘श्रीशैल शिखरम् दृष्ट पुनर्जन्म न विध्यते।’ इसका अर्थ है कि श्रीशैल शिखर का दर्शन करने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता है। यानी वह जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा जाता है।

    प्रलय के बाद भी रहेगी यह जगह 

    मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट श्रीशैलदेवस्थानम में दी गई जानकारी के अनुसार, मंदिर की महिमा का वर्णन प्राचीन लिपियों, रामायण, पुराणों आदि में किया गया है। शिवरहस्यम के अनुसार, श्रीशैलेश्वरलिंगतुल्यममलं लिंगं न भूमंडले ब्रह्माण्डप्रलयपि तस्यविलया नष्टति वेदोक्तयः 

    इसका अर्थ है कि श्रीशैलेश्वर लिंग के समान इस भूमंडल में कोई दूसरा लिंग नहीं है। ब्रह्मांड में प्रलय के बाद भी रहने वाला भगवान शिव का एकमात्र धाम श्रीशैल क्षेत्र है।

    यहां पर कुमार, अगस्त्य, वशिष्ठ, लोपामुद्रा, व्यास महर्षि, गर्ग महर्षि, दुर्वासोमा महर्षि, मन्मधुडु, शंकरचार्युलु जैसे कई ऋषि, तपस्वियों ने साधना की है। भगवान श्री राम, पांडव के अलावा रावण और हिरण्यकश्यप जैसे असुर भी भोलेनाथ की भक्ति के लिए यहां पहुंचे थे। 

    कैलास जैसा आनंद पाते हैं यहां भोलेनाथ 

    श्रीशैल खंडम अस्थि में नियतावासः कैलास इति सर्वधा भुवि श्रीपर्वतथो नाम सह सर्वसुरोत्तमै। अत्र मे हृदयं देवी यधा पृथिमापगथम न ठाधा रामथे तत्र कैलासे कामदायनि।

    इसका अर्थ है- हे पार्वती, हर कोई जानता है कि मैं केवल कैलास में रहता हूं। लेकिन, पृथ्वी पर एकमात्र स्थान, जो मुझे खुशी देता है वह श्रीशैल की पहाड़ी है। देवी! मेरा हृदय श्रीशैलम में उसी प्रकार आनंद से भर जाता है, जैसे कैलास पर्वत पर आनंद से लहराता है।

    यह भी पढ़ें- Sawan Somvar 2025 : कितने मुखी होते हैं रुद्राक्ष, जानिए किसे पहनने से मिलता है क्या लाभ

    द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति      

    सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्‌। 

    उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम्‌ ॥1॥ 

    परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्‌। 

    सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥ 

    वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे। 

    हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥ 

    एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः। 

    सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥ 

    ॥इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम्‌॥

    यह भी पढ़ें- Sawan 2025: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग हवा में तैरता था, जानिए इस मंदिर के टूटने, लुटने और फिर बनने की कहानी

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।