शतपथ ब्राह्मण के रचियता ऋषि याज्ञवल्क्य के इस ग्रंथ में 100 अध्याय हैं
मत्स्य पुराण में उल्लेखित है, 'वशिष्ठ कुल के गोत्रकार जिनको याज्ञदत्त नाम भी दिया जाता है।' विष्णुपुराण में इन्हें ब्रह्मरात का पुत्र और वैशंपायन का शिष्य कहा गया है। इस वर्ष 13 मार्च को उनकी जयंती है। याज्ञवल्क्य, ईसापूर्व 7वीं शताब्दी जन्में थे। वह वैदिक काल में ऋषि तथा दार्शनिक
मत्स्य पुराण में उल्लेखित है, 'वशिष्ठ कुल के गोत्रकार जिनको याज्ञदत्त नाम भी दिया जाता है।' विष्णुपुराण में इन्हें ब्रह्मरात का पुत्र और वैशंपायन का शिष्य कहा गया है। इस वर्ष 13 मार्च को उनकी जयंती है। याज्ञवल्क्य, ईसापूर्व 7वीं शताब्दी जन्में थे। वह वैदिक काल में ऋषि तथा दार्शनिक के रूप में प्रसिद्ध थे। याज्ञवल्क्य ने ही शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ की रचना की थी। ऋषि याज्ञवल्क्य का उल्लेख अनेक धर्म ग्रंथो में मिलता है।
शतपथ ब्राह्मण के रचियता ऋषि याज्ञवल्क्य के इस ग्रंथ में 100 अध्याय हैं जो 14 कांड में बांटा है। पहले दो कांड में दर्श और पौर्णमास इष्टियों का वर्णन है। याज्ञवल्क्य के गुरु आचार्य वैशंपायन थे, जिनसे वैदिक विषय में उनका भारी मतभेद हो गया था।
भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार याज्ञवल्क्य ने सूर्य की उपासना की थी और सूर्यऋयी विद्या एवं प्रणावत्मक अक्षर तत्व इन दोनों की एकता यही उनके दर्शन का मूल सूत्र था।
ऋषि याज्ञवल्क्य को सदानीरा कहा गया है। वे कौसिक कुल के थे, वायु औए विष्णु पुराण के अनुसार याज्ञवल्क्य के पिता का नाम ब्रम्हा और श्रीमदभगवत के अनुसार देवरात था। उनका एक पुत्र था जिसका नाम शुनःशेप का पुत्र था।
वह अंगिरा कुल का था जिसे ऋषि विश्वामित्र ने अपना पुत्र मान आध्यात्मिक उत्तराधिकार दिया। इस तरह शुनःशेप विश्वामित्र का पुत्र बन गया। और इस कारण कौसिक कुल शुरु हुआ। वैदिक ग्रंथों में विश्वामित्र का निज नाम विश्वरथ था। विश्वामित्र कुल के लोग कौसिक कहलाते हैं।
महाभारत सहित कई ग्रंथों में याज्ञवल्क्य को कौसिक ही कहा गया है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार याज्ञवल्क्य कृष्णद्वैपायन व्यास के शिष्य करीबी रिश्ते में मामा थे, यजुर्वेद प्रवचन में कुछ मतभेद हुआ वे अलग हो यजुर्वेद संहिता पर अध्ययन कर ब्राम्हण ग्रन्थ लिखा जिसे शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ कहते हैं यजुर्वेद की कई शाखाएं उनकी देन हैं।
याज्ञवल्क्य ने शतपथ ब्राह्मण अलावा याज्ञवल्क्य शिक्षा, याज्ञवल्क्य स्मृति और योगि याज्ञवल्क्य ये तीनों ग्रंथ लिखे थे। मान्यता है कि याज्ञवल्क्य ब्रह्मा जी के अवतार थे। यज्ञ में पत्नी सावित्री की जगह गायत्री को स्थान देने पर सावित्री ने क्रोधवश इन्हें श्राप दे दिया।
इस शाप के कारण ही वे कालान्तर में याज्ञवल्क्य के रूप में चारण ऋषि के यहां उत्पन्न हुए। वैशम्पायन जी से उन्होंने यजुर्वेद संहिता एवं ऋगवेद संहिता वाष्कल मुनि का ज्ञान प्राप्त किया।
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