Saptarshi Story: कौन हैं वह सप्तऋषि जिन्हें माना जाता है वैदिक धर्म का संरक्षक
Saptarshi Story सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का विशेष महत्व बना हुआ है। राजाओं से लेकर आम जनता तक को शिक्षा-दीक्षा देने का काम ऋषि-मुनियों द्वारा ही किया जाता था। रात के समय आसमान में दिखने वाले तारामंडल को सप्तऋषि की संज्ञा दी जाती है। आइए जानते हैं यह सप्तऋषि कौन हैं। और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Saptarshi Story: प्राचीन काल में सात ऋषियों का एक समूह था जिसे सप्तऋषि कहा जाता था। वेदों में इन सात ऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक माना गया है। इन्हीं ऋषिओं के नाम से कुल के नामों का भी पता लगाया जाता है। इन ऋषियों पर ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाए रखने और मानव जाति को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी है। माना जाता है कि सप्तऋषि आज भी अपने इन कार्यों में लगे हुए हैं।
कैसे हुई सप्तऋषि की उत्पत्ति
।।सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।।
वेदों में वर्णित इस श्लोक में सप्तऋषि के नाम बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं- वशिष्ठ, विश्वामित्र, कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, ऋषि। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सप्तऋषि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से हुई है। इसलिए उन्हें ज्ञान, विज्ञान, धर्म-ज्योतिष और योग में सर्वोपरि माना जाता है।
कौन थे ये ऋषि
ऋषि वशिष्ठ - ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु थे। उनके द्वारा ही राजा दशरथ के चारों पुत्रों- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने शिक्षा प्राप्त की थी। उनके कहने पर ही राजा दशरथ ने श्री राम और श्री लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। जिसमें ऋषि वशिष्ठ विजयी हुए थे।
ऋषि विश्वामित्र - विश्वामित्र ऋषि होने के साथ-साथ एक राजा भी थे। वे ऋषि विश्वामित्र ही थे जिन्होनें गायत्री मन्त्र की रचना की थी। ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या को भंग किया जाने का प्रसंग बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को शरीर के साथ ही स्वर्ग के दर्शन करा दिए थे।
ऋषि कश्यप - ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, कश्यप ऋषि के वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। कश्यप ऋषि की 17 पत्नियां थी। इनकी अदिति नाम की पत्नी से सभी देवता और दिति नाम की पत्नी से दैत्यों की उत्पत्ति मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि शेष पत्नियों से भी अलग-अलग जीवों की उत्पत्ति हुई है।
ऋषि भारद्वाज - सप्तऋषियों में भारद्वाज ऋषियों को सबसे सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। ऋषि भारद्वाज ने आयुर्वेद सहित कई ग्रंथों की रचना की थी। इनके पुत्र द्रोणाचार्य थे।
ऋषि अत्रि - ऋषि अत्रि, ब्रह्मा के सतयुग के 10 पुत्रों में से एक माने जाते हैं। अनुसूया उनकी पत्नी थी। हमारे देश में कृषि विकास के लिए ऋषि अत्रि का योगदान सबसे अहम माना जाता है। उन्हें प्राचीन भारत में बहुत बड़ा वैज्ञानिक भी माना जाता है।
ऋषि जमदग्नि - भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि के ही पुत्र थे। इनके आश्रम में इच्छित फलों को प्रदान करनी वाली गाय थी, जिसे कार्तवीर्य छीनकर अपने साथ ले गया था। परशुराम जी को जब इस बात का पता चला तो वह कार्तवीर्य को मारकर कामधेनु गाय वापिस आश्रम में ले आए।
ऋषि गौतम - गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या थीं। इनके श्राप के कारण ही अहिल्या पत्थर बन गई थी। भगवान श्रीराम की कृपा से अहिल्या ने पुन: अपना रूप प्राप्त किया था। गौतम ऋषि अपने तपबल पर ब्रह्मगिरी के पर्वत पर मां गंगा को लेकर आए थे।
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