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    Santhara Pratha: क्या है जैन धर्म की संथारा प्रथा, जिसकी देशभर में हो रही है चर्चा

    Updated: Tue, 06 May 2025 03:20 PM (IST)

    जैन धर्म की संथारा प्रथा आजकल चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि हाल ही में इंदौर की वियाना जो केवल 3 साल की थी संथारा व्रत लेने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की व्यक्ति बन गई हैं। आज हम आपको जैन धर्म की इसी संथारा प्रथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे महापवित्र प्रथा के रूप में देखा जाता है।

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    Santhara Pratha Jainism किसको मिलती हैं संथारा लेने की अनुमति?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। असल में संथारा (Santhara Pratha Jainism), जैन धर्म की एक ऐसी परम्परा है, जिसमें मृत्यु को भी एक महोत्सव के रूप आत्मसात किया जाता है। इसे जैन धर्म में एक सर्वोच्च व्रत माना जाता है। यह प्रथा असल में स्वेच्छा से देह त्यागने की परंपरा है। जैन धर्म में इसे जीवन की अंतिम साधना माना जाता है, जो एक धार्मिक संकल्प भी है। इस प्रथा में भगवान महावीर के उपदेशानुसार जन्म की तरह ही मृत्यु को भी उत्सव का रूप दिया जाता है।

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    कैसे की जाती है ये प्रथा  (what is Santhara Pratha)

    जब किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु का समय नजदीक है, तो वह अंत समय में अपनी इच्छाओं को वश में करके अन्न और जल का त्याग कर देता है। संथारा लेने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे अपना भोजन कम कर देता है और एक समय बाद जल का भी त्याग कर देता है। संथारा की शुरुआत सबसे पहले सूर्योदय के बाद 48 मिनट तक उपवास से होती है, जिसमें जल भी नहीं पिया जाता। इस व्रत को नौकार्थी कहा जाता है। संथारा लेने से पहले पूरे परिवार और गुरु की आज्ञा लेनी जरूरी होती है, इसके बिना संथारा नहीं किया जा सकता।

    (Picture Credit: Freepik)

    इनकी अनुमति है जरूरी

    जब कोई व्‍यक्ति संथारा की इच्‍छा व्‍यक्‍त करता है, तब सबसे उसे अपने परिवार व पूरे समाज की सहमति लेना आवश्यक होता है और इसके बाद आचार्य से इसकी अनुमति मांगी जाती है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति को देखने के बाद ही संथारा की अनुमति दी जा सकती है।

    उदाहरण के तौर पर अगर एक 20 वर्ष का युवा शारीरिक या फिर मानसिक रूप से पीड़ित है, तो उसे संथारा की अनुमति मिल सकती है, लेकिन वहीं अगर कोई 90 वर्ष का वृद्ध व्यक्ति स्वस्थ है, तो उसे इसकी अनुमति नहीं मिल सकती।

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    (Picture Credit: Freepik)

    कब ले सकते हैं संथारा

    संथारा लेने की धार्मिक आज्ञा किसी गृहस्थ और मुनि या साधु को है। जैन धर्म के मुताबिक, जब कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित हो और उसका इलाज संभव हो, या फिर जब व्यक्ति का शरीर उसका साथ न दे, तब संथारा लिया जा सकताहै। संथारा लेने के बाद भी डॉक्टरी सलाह ली जा सकती है, इससे व्रत में कोई बाधा नहीं आती।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।