Santan Saptami 2025: संतान सप्तमी पर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा संतान सुख का वरदान
आज संतान सप्तमी का व्रत रखा जा रहा है। यह शिव जी और मां पार्वती को समर्पित है। इस व्रत का पूरा फल तभी मिलता है जब इसकी कथा का पाठ किया जाता है। ऐसे में आइए आइए यहां संतान सप्तमी व्रत कथा का पाठ (Santan Saptami 2025 Vrat Katha) करते हैं जो इस प्रकार है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Santan Saptami 2025: संतान सप्तमी का व्रत संतान की प्राप्ति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है, जो इस साल 30 अगस्त, 2025 यानी आज पड़ रहा है। इस दिन माता-पिता व्रत रखते हैं और भगवान शिव व देवी पार्वती की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ संतान सप्तमी की कथा का पाठ करना या सुनना चाहिए, क्योंकि यह अनुष्ठान का अहम हिस्सा है। साथ ही कथा के साथ ही व्रत पूर्ण होता है, तो आइए पढ़ते हैं।
संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami 2025 Vrat Katha In Hindi)
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एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि कोई ऐसा व्रत बताएं, जिससे संतान संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाएं। इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें एक कथा सुनाई। अयोध्या के राजा नहुष की पत्नी रानी चंद्रमुखी थी और उनके नगर में विष्णुगुप्त नामक एक ब्राह्मण की पत्नी भद्रमुखी थी। रानी और ब्राह्मणी में बहुत प्रेम था। एक दिन वे सरयू नदी में नहाने गईं, जहां उन्होंने कुछ स्त्रियों को भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते देखा। जब उन्होंने पूछा कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं, तो स्त्रियों ने बताया कि यह संतान सप्तमी का व्रत है, जो संतान की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
रानी और ब्राह्मणी ने भी यह व्रत करने का मन बनाया। ब्राह्मणी भद्रमुखी ने पूरी श्रद्धा से यह व्रत किया, लेकिन रानी चंद्रमुखी ने लापरवाही बरती और कभी यह व्रत किया और कभी छोड़ दिया। जब दोनों की मृत्यु हुई, तो रानी ने अगले जन्म में बंदरिया का रूप लिया और ब्राह्मणी ने मुर्गी का। मुर्गी बनी ब्राह्मणी अपने पिछले जन्म का व्रत नहीं भूली और लगातार भगवान शिव का ध्यान करती रही, जबकि बंदरिया बनी रानी सब कुछ भूल गई।
इसके बाद, दोनों ने फिर से मनुष्य के रूप में जन्म लिया। ब्राह्मणी एक ब्राह्मण के घर भूषणदेवी नाम की कन्या के रूप में जन्मी और उसका विवाह एक ब्राह्मण से हुआ। अपने व्रत के पुण्य से उसे आठ सुंदर, गुणी और स्वस्थ पुत्रों की प्राप्ति हुई। दूसरी ओर, रानी को शिव की पूजा न करने के कारण संतान नहीं मिली और वह बहुत दुःखी रहने लगी। वहीं, जब वह बूढ़ी हुई, तो उसे एक गूंगा, बहरा और कमजोर पुत्र हुआ जो नौ साल की उम्र में मर गया।
रानी बहुत दुःखी थी। एक दिन भूषणदेवी अपने आठों बेटों के साथ रानी से मिलने आई। रानी ने भूषणदेवी की खुशी और उनके आठ पुत्रों को देखकर मन में ईर्ष्या महसूस की। उसने उन बच्चों को विष मिला हुआ लड्डू खिला दिया, लेकिन भगवान शिव की कृपा से उन्हें कुछ नहीं हुआ। यह देखकर रानी हैरान रह गई। उसने भूषणदेवी से इसका रहस्य पूछा।
तब भूषणदेवी ने उसे अपने पिछले दो जन्मों की कहानी और संतान सप्तमी व्रत का महत्व बताया। यह सुनकर रानी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने भूषणदेवी से माफी मांगी और उसी दिन से सच्चे मन से संतान सप्तमी का व्रत करना शुरू कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से रानी को भी संतान सुख की प्राप्ति हुई और वह जीवन के सारे सुख भोगकर वह अंत में शिवलोक गई।
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