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    Sanskrit Shlokas for Success: सफलता दिला सकते हैं संस्कृत के ये श्लोक, जानें हिंदी अर्थ

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Sun, 13 Aug 2023 06:51 PM (IST)

    Sanskrit Shlokas in Hindi किसी कार्य की सफलता या असफलता हमारे द्वारा किए गए प्रयास के आधार पर तय होती है। प्रयास अच्छा होगा तो सफलता निश्चित है। अन्यथा हमें और प्रयास करने की जरूरत है। संस्कृत में कई ऐसे श्लोक बताए गए हैं जो व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही संस्कृत श्लोक उनके अर्थ के साथ।

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    Sanskrit Shlokas सफलता के लिए पढ़ें ये संस्कृत श्लोक।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Sanskrit Shlokas for Success: संस्कृत सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है। यह भाषा जितनी प्राचीन है उनती वैज्ञानिक भी। संस्कृत में ऐसे कई श्लोक मौजूद हैं जो व्यक्ति को प्रेरणा देने का काम करते हैं। आइए पढ़ते हैं ऐसे ही कुछ श्लोक जो व्यक्ति को मेहनत करने और सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं।

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    “उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

    न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।”

    अर्थ – सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

    “योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।

    सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥”

    अर्थ – इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है

    “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

    क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥”

    अर्थ - उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। तेरे रास्ते कठिन हैं, और वे अत्यन्त दुर्गम भी हो सकते हैं, लेकिन विद्वानों का कहना हैं कि कठिन रास्तों पर चलकर ही सफलता प्राप्त होती है।

    न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।

    व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।

    अर्थ- एक ऐसा धन जिसे चुराया नहीं जा सकता, जिसे कोई भी छीन नहीं सकता, जिसका भाइयों के बीच बँटवारा नहीं किया जा सकता, जिसे संभलना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है और जो खर्च करने पर और अधिक बढ़ता है, वह धन, विद्या है। विद्या सबसे श्रेष्ठ धन है।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'