Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Sankashti Chaturthi 2025: संकष्टी चतुर्थी पर ऐसे करें मां पार्वती की कृपा प्राप्त, मिलेगा बप्पा का आशीर्वाद

    विकट संकष्टी चतुर्थी (Vikata Sankashti Chaturthi 2025) का व्रत पूरी तरह से गौरी नंदन यानी गणेश जी को समर्पित है। पंचाग को देखते हुए इस बार यह उपवास 16 अप्रैल को रखा जाएगा। इस दिन पूजा के साथ व्रत का पालन करने से सभी दुखों का अंत होता है। इसके अलावा इस तिथि पर पार्वती चालीसा का पाठ करना भी बेहद मंगलकारी माना जाता है जो इस प्रकार है।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 14 Apr 2025 08:23 AM (IST)
    Hero Image
    Sankashti Chaturthi 2025: संकष्टी चतुर्थी का महत्व।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में श्री गणेश की पूजा और उनके लिए रखा जाने वाला विकट संकष्टी चतुर्थी (Vikata Sankashti Chaturthi 2025) बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इस व्रत का बड़ा महत्व है। इस दिन भक्त भगवान गणेश की पूजा और व्रत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि बप्पा के इस व्रत का पालन करने से उनका आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा इस तिथि पर पार्वती चालीसा का पाठ करना भी बेहद शुभ माना जाता है। ऐसे में सुबह उठें और स्नान करें। फिर शिव परिवार के सामने घी का दीपक जलाएं। उनकी विधिवत पूजा करें। बप्पा को सिंदूर, दुर्वा और मोदक जरूर अर्पित करें। गणेश मंत्रों का जाप, पार्वती चालीसा और शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करें। अंत में आरती करें और अपनी मनोकामना बोलें।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर विकट संकष्टी चतुर्थी (Vikat Sankashti Chaturthi 2025) का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह 16 अप्रैल को मनाया जाएगा।

    ।।पार्वती चालीसा।। (Parvati Chalisa)

    ॥ दोहा ॥

    जय गिरी तनये दक्षजे,शम्भु प्रिये गुणखानि।

    गणपति जननी पार्वती,अम्बे! शक्ति! भवानि॥

    ॥ चौपाई ॥

    ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे।

    पंच बदन नित तुमको ध्यावे॥

    षड्मुख कहि न सकत यश तेरो।

    सहसबदन श्रम करत घनेरो॥

    तेऊ पार न पावत माता।

    स्थित रक्षा लय हित सजाता॥

    अधर प्रवाल सदृश अरुणारे।

    अति कमनीय नयन कजरारे॥

    ललित ललाट विलेपित केशर।

    कुंकुम अक्षत शोभा मनहर॥

    कनक बसन कंचुकी सजाए।

    कटी मेखला दिव्य लहराए॥

    कण्ठ मदार हार की शोभा।

    जाहि देखि सहजहि मन लोभा॥

    बालारुण अनन्त छबि धारी।

    आभूषण की शोभा प्यारी॥

    नाना रत्न जटित सिंहासन।

    तापर राजति हरि चतुरानन॥

    इन्द्रादिक परिवार पूजित।

    जग मृग नाग यक्ष रव कूजित॥

    गिर कैलास निवासिनी जय जय।

    कोटिक प्रभा विकासिन जय जय॥

    त्रिभुवन सकल कुटुम्ब तिहारी।

    अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी॥

    हैं महेश प्राणेश! तुम्हारे।

    त्रिभुवन के जो नित रखवारे॥

    उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब।

    सुकृत पुरातन उदित भए तब॥

    बूढ़ा बैल सवारी जिनकी।

    महिमा का गावे कोउ तिनकी॥

    सदा श्मशान बिहारी शंकर।

    आभूषण हैं भुजंग भयंकर॥

    कण्ठ हलाहल को छबि छायी।

    नीलकण्ठ की पदवी पायी॥

    देव मगन के हित अस कीन्हों।

    विष लै आपु तिनहि अमि दीन्हों॥

    ताकी तुम पत्नी छवि धारिणि।

    दूरित विदारिणी मंगल कारिणि॥

    देखि परम सौन्दर्य तिहारो।

    त्रिभुवन चकित बनावन हारो॥

    भय भीता सो माता गंगा।

    लज्जा मय है सलिल तरंगा॥

    सौत समान शम्भु पहआयी।

    विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी॥

    तेहिकों कमल बदन मुरझायो।

    लखि सत्वर शिव शीश चढ़ायो॥

    नित्यानन्द करी बरदायिनी।

    अभय भक्त कर नित अनपायिनी॥

    अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनि।

    माहेश्वरी हिमालय नन्दिनि॥

    काशी पुरी सदा मन भायी।

    सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी॥

    भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री।

    कृपा प्रमोद सनेह विधात्री॥

    रिपुक्षय कारिणि जय जय अम्बे।

    वाचा सिद्ध करि अवलम्बे॥

    गौरी उमा शंकरी काली।

    अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली॥

    सब जन की ईश्वरी भगवती।

    पतिप्राणा परमेश्वरी सती॥

    तुमने कठिन तपस्या कीनी।

    नारद सों जब शिक्षा लीनी॥

    अन्न न नीर न वायु अहारा।

    अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा॥

    पत्र घास को खाद्य न भायउ।

    उमा नाम तब तुमने पायउ॥

    तप बिलोकि रिषि सात पधारे।

    लगे डिगावन डिगी न हारे॥

    तब तव जय जय जय उच्चारेउ।

    सप्तरिषि निज गेह सिधारेउ॥

    सुर विधि विष्णु पास तब आए।

    वर देने के वचन सुनाए॥

    मांगे उमा वर पति तुम तिनसों।

    चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों॥

    एवमस्तु कहि ते दोऊ गए।

    सुफल मनोरथ तुमने लए॥

    करि विवाह शिव सों हे भामा।

    पुनः कहाई हर की बामा॥

    जो पढ़िहै जन यह चालीसा।

    धन जन सुख देइहै तेहि ईसा॥

    ॥ दोहा ॥

    कूट चन्द्रिका सुभग शिर,जयति जयति सुख खानि।

    पार्वती निज भक्त हित,रहहु सदा वरदानि॥

    यह भी पढ़ें: Vat Savitri Vrat 2025: सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत में न करें ये गलतियां, मिल सकते हैं बुरे परिणाम!

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।