Rohini Vrat 2025 Katha: रोहिणी व्रत में करें इस पौराणिक कथा का पाठ, मिलेगा शुभ फल
जैन समुदाय में रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है, जो मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की द्वितीया और तृतीया को मनाया जाता है, जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें इसकी कथा का पाठ (Rohini Vrat 2025 Katha In Hindi) जरूर करना चाहिए, जो इस प्रकार हैं। माना जाता है कि यह व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Rohini Vrat 2025 katha: रोहिणी व्रत कथा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रोहिणी व्रत मुख्य रूप से जैन समुदाय में बहुत महत्व रखता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, आज यानी 07 नवंबर को मार्गशीर्ष (Margashirsha Month 2025) माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया और तृतीया तिथि है। इस पावन तिथि रोहिणी व्रत (Rohini Vrat 2025) का पर्व मनाया जा रहा है। कुछ साधक इस दिन व्रत करते हैं। कहते हैं कि व्रत का पूरा फल तभी तभी मिलता है, जब इसकी पावन कथा का पाठ किया जाए, तो आइए पढ़ते हैं।
रोहिणी व्रत कथा (Rohini Vrat 2025 Katha In Hindi)
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प्राचीन काल में चंपापुरी नगर में राजा माधवा और रानी लक्ष्मीपति राज करते थे। उनके सात पुत्र और एक पुत्री थी, जिसका नाम रोहिणी था। एक बार राजा ने एक ब्राम्हण से अपनी पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि रोहिणी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक से होगा। एक समय हस्तिनापुर के वन में श्री चारण मुनिराज पधारे। राजा अशोक और रानी रोहिणी उनके दर्शन के लिए गए। राजा ने मुनिराज से पूछा कि रानी रोहिणी इतनी शांत क्यों रहती हैं, जबकि अन्य रानियां ऐसी नहीं हैं। तब मुनिराज ने राजा को एक पुरानी कथा सुनाते हुए कहा कि इसी नगर में वस्तुपाल नामक राजा का धनमित्र नाम का मित्र था। धनमित्र की एक पुत्री थी, जिसका नाम दुर्गंधा था। उसके शरीर से इतनी दुर्गंध आती थी कि कोई उससे विवाह करने को तैयार नहीं था। परेशान होकर धनमित्र मुनिराज की शरण में गया।
मुनिराज ने बताया कि दुर्गंधा के यह दुर्गंध पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। उन्होंने दुर्गंधा को रोहिणी व्रत करने का विधान बताया। उन्हें हर महीने रोहिणी नक्षत्र के दिन चारों प्रकार के आहार का त्याग करना था और भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा करनी थी। दुर्गंधा ने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ यह व्रत 5 साल और 5 माह तक किया। इस व्रत के प्रभाव से उसका शरीर सुगंधित हो गया।
इसके बाद अगले जन्म वह पहले स्वर्ग की देवी बनी और फिर उसका जन्म राजा अशोक की रानी रोहिणी के रूप में हुआ, जिसका शांत स्वभाव इसी व्रत का परिणाम है। इसके बाद, मुनिराज ने राजा अशोक को उनके भील वाले पिछले जन्म और रोहिणी व्रत के महात्म्य की कथा सुनाई। रोहिणी व्रत के फल से राजा अशोक और रानी रोहिणी ने संसार के सुख भोगे और अंत में मोक्ष को प्राप्त किया।
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