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    जिह्वा का संयम: संयमित होकर कर सकते हैं मनुष्य जीवन को सार्थक

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Thu, 18 Nov 2021 08:54 AM (IST)

    जिह्वा यदि बिना विचार किए शब्द का प्रयोग करती है तो व्यक्ति के जीवन में न केवल छोटे-मोटे विरोधी खड़े हो जाते हैं अपितु महाभारत जैसे युग परिवर्तक युद्ध ...और पढ़ें

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    जिह्वा का संयम: संयमित होकर कर सकते हैं मनुष्य जीवन को सार्थक

    विधाता की सृष्टि संरचना बड़े विधि-विधान से की गई है। इसमें चौरासी लाख प्रकार के जीवों का अवतरण होता है, जिनमें से मनुष्य को भी दूसरे जीवों की ही भांति एक शरीर देकर जगत व्यवहार करने का अधिकार दिया गया है। यह शरीर दस इंद्रियों का एक स्थूल स्वरूप है, जिसमें मन नामक एक चेतन इंद्रिय भी अवस्थित है और यही अन्य इंद्रियों के द्वारा ग्रहण किए गए विषयों को चेतन आत्मा तक पहुंचाती है।

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    मन के अतिरिक्त अन्य जो दस इंद्रियां हैं, उनमें से जिह्वा, त्वचा, नेत्र, नासिका मुख्य हैं, क्योंकि प्रत्यक्षत: यही शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध विषयों को ग्रहण करती हैं। वैसे तो कहा यह गया है कि प्रत्येक इंद्रिय को अपने लिए निर्धारित एक ही विषय ग्रहण करने का सामथ्र्य प्राप्त है, परंतु जिह्वा ही एकमात्र ऐसी इंद्रिय है, जिसे शब्द और रस के रूप में दो विषय ग्रहण करने की क्षमता मिली हुई है।

    जिह्वा यदि बिना विचार किए शब्द का प्रयोग करती है तो व्यक्ति के जीवन में न केवल छोटे-मोटे विरोधी खड़े हो जाते हैं, अपितु महाभारत जैसे युग परिवर्तक युद्ध तक छिड़ जाते हैं, जिनमें पूरे के पूरे परिवार का विनाश हो जाता है। यह जिह्वा का ही असंयम है कि जिसे मांसाहार की स्वाभाविक आवश्यकता नहीं, लेकिन वही असंयम जिह्वा के स्वाद के लिए प्रतिदिन हजारों-हजार निरीह जीवों की हत्या का निमित्त बनता है।

    बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अपनी जिह्वा के स्वाद के फेर में फंसकर अनेक प्रकार के अनुचित और मादक पदार्थो का सेवन करते हुए न केवल अपना जीवन संकट में डाल लेते हैं, अपितु अपने परिवार के लिए भी मुसीबतों को आमंत्रण दे बैठते हैं। इसलिए हमें यह विचार करना चाहिए कि हम अन्य सभी जीवों से इसलिए श्रेष्ठ हैं, क्योंकि हमें बुद्धि और विवेक का ऐसा प्रसाद मिला है, जो मनुष्य से भिन्न किसी भी जीव को नहीं मिला है। इसलिए हम संयमित होकर मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकते हैं।

    डा. गदाधर त्रिपाठी