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धार्मिक एवं चिकित्सकीय दोनों संदर्भ से व्रत के कई सारे कारण एवं लाभ बताए गए हैं

इस बात का विशेष ख्याल रखें कि उपवास की प्रक्रिया सिर्फ कम खाने या सात्विक भोजन से ही पूर्ण नहीं हो जाती। इस दौरान सुबह-शाम ध्यान करना भी जरूरी है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 03 Feb 2017 04:20 PM (IST)Updated: Sat, 04 Feb 2017 10:43 AM (IST)
धार्मिक एवं चिकित्सकीय दोनों संदर्भ से व्रत के कई सारे कारण एवं लाभ बताए गए हैं
धार्मिक एवं चिकित्सकीय दोनों संदर्भ से व्रत के कई सारे कारण एवं लाभ बताए गए हैं

व्रत क्यों करते हैं? व्रत क्यों किया जाता है? अमूमन लोग इसे धार्मिक प्रथा मानकर अपनाते हैं, वर्षों से देवी-देवता को पूजने का एक तरीका व्रत भी है, शायद इसलिए इस रिवाज़ को आज भी निभाया जाता है। लेकिन क्या सच में कारण सिर्फ इतने ही हैं?

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धार्मिक एवं चिकित्सकीय लाभ

धार्मिक एवं चिकित्सकीय दोनों संदर्भ से व्रत के कई सारे कारण एवं लाभ बताए गए हैं। शुरुआत हम धार्मिक उद्देश्य से व्रत रखने से करते हैं, जिसके अनुसार संकल्पपूर्वक किए गए कर्म को व्रत कहते हैं। अर्थात् जब आप किसी चेतना एवं इच्छा की पूर्ति के लिए ईश्वर से एक वरदान चाहते हैं और इसके बदले में व्रत को अपनी तपस्या का माध्यम बनाते हैं, तभी यह कर्म किया जाता है। मनुष्य किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के लिए अन्न या जल का त्याग करते हैं, वे भोजन का एक दाना भी ग्रहण नहीं करते। उनके इसी त्याग को मान्यतानुसार व्रत का नाम दिया गया है। मनुष्य के नज़रिये से व्रत धर्म का साधन माना गया है। लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि व्रत के लिए पूरे दिन के लिए अन्न एवं जल का त्याग किया जाए।

व्रत के तीन प्रकार

धार्मिक मान्यताओं के आधार पर व्रत के तीन प्रकार होते हैं – नित्य, नैमित्तिक और काम्य। नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है। जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, क्रोध न करना, अश्लील विचारों से दूर रहना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं।

नित्य व्रत

नित्य व्रत का मतलब ही उस व्रत से है जो रोज़ाना किया जाए। इसलिए शास्त्रों के अनुसार रोज़ाना अन्न-जल त्याग के अलावा यह एक ऐसा व्रत है जो हर एक मनुष्य कर तो सकता है, लेकिन यह व्रत करना उतना भी आसान नहीं है।

नैमिक्तिक व्रत

दूसरे प्रकार का व्रत है नैमिक्तिक व्रत, उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। धार्मिक दिशा-निर्देश के साथ व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले व्रत इस श्रेणी में भी आ सकते हैं।

काम्य व्रत

तीसरे प्रकार का व्रत है काम्य व्रत, जो किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। यह इच्छा संसारिक हो सकती है, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत, धन-समृद्धि के लिए व्रत या फिर अन्य मानवीय सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

चिकित्सकीय कारण

लेकिन धार्मिक उद्देश्य के अलावा ऐसे कई चिकित्सकीय कारण भी हैं जो व्रत करने को फायदेमंद मानते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि व्यक्ति के शरीर में धीरे-धीरे कई प्रकार के जहरीले पदार्थ इकट्ठे होते रहते हैं, जो कि आगे चलकर रोगों का कारण बनते हैं। लेकिन उपवास धारण करने से मन तथा शरीर का शोधन हो जाता है जिसके बाद सभी विषैले, विजातीय तत्व बाहर निकल जाते हैं। अंत में व्यक्ति को एक निरोग शरीर प्राप्त होता है।

व्रत का एक उद्देश्य ये भी

इसके अलावा हमारा खानपान सही हो, यह भी व्रत का एक उद्देश्य माना गया है। पेट को किसी टीन-कनस्तर की तरह ठूंस-ठूंस कर भरने की प्रवृत्ति को कम करने का यह एक माध्यम है। यही कारण है कि व्रत को वजन घटाने की प्रक्रिया के रूप में भी अपनाया जाता है। यूं तो आम नज़रिए से देखा जाए तो हिन्दू धर्म में अनगिनत व्रत हैं, जिनके रिवाज़ भी भिन्न-भिन्न हैं। किसी व्रत में अन्न-जल का पूर्ण त्याग करना पड़ता है तो किसी में जल तो ग्रहण कर सकते हैं लेकिन अन्न नहीं। परन्तु कुछ व्रत के अनुसार जल के साथ अन्न के रूप में केवल फलाहार ग्रहण किया जाता है।

तामसिक खाद्य पदार्थ की मनाही

अब जब निर्देशों की बात आरंभ हो गई है तो बता दें कि व्रत के अनुसार भूलकर भी तामसिक भोजन करने की इजाज़त नहीं दी जाती है। तामसिक खाद्य पदार्थ यानी कि मांस, मछली, अंडा, इत्यादि वह चीज़ें जो किसी जीव के प्रयोग से बनाई जाती हैं। इसके अलावा नशीले पदार्थ जैसे कि शराब एवं धूम्रपान के लिए भी मना किया जाता है।व्रत अनुशासन के अनुसार व्रत करने वाले व्यक्ति को केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। इसके अलावा किसी भी प्रकार का अन्य खाद्य पदार्थ ग्रहण करना भी पाप के समान माना जाता है। और ऐसी मान्यता है कि व्रत के दौरान अनुशासनों को तोड़ना एक बड़े दंड के समान है।

वैज्ञानिक रूप से भी जरूरी है

लेकिन धार्मिक कारणों के अलावा वैज्ञानिक रूप से भी व्रत के दौरान तामसिक की बजाय सात्विक भोजन करने के कई फायदे हैं। जिसमें से पहले फायदा है सात्विक भोजन करने से शरीर में पैदा होने वाले विषैले पदार्थों के प्रभाव को समाप्त करना, या फिर धीरे-धीरे कम करना।

सात्विक भोजन के प्रकार

लेकिन सात्विक भोजन का चयन कैसे करें यह एक बड़ा सवाल है। शास्त्रों के अनुसार सात्विक भोजन की श्रेणी में दूध, घी, फल और मेवे आते हैं। उपवास में ये आहार इसलिए मान्य हैं कि ये भगवान को अर्पित की जाने वाली वस्तुएं हैं।

दूध से बनी चीज़ें

इसके अलावा चिकित्सकीय संदर्भ से भी ये खाद्य पदार्थ शरीर में सात्विकता बढ़ाने के लिए सहायक सिद्ध होते हैं। इसलिए इन्हें ग्रहण करना सही समझा जाता है। इसके अलावा दूध से बनी कोई भी वस्तु भी ग्रहण की जा सकती है। लेकिन इसके अलावा अन्य कोई भी खाद्य पदार्थ का सेवन करना निषेध माना गया है।

इसका सेवन कभी ना करें

भगवद्गीता के अनुसार मांस, अंडे, खट्टे और तले हुए मसालेदार और बासी या संरक्षित व ठंडे पदार्थ राजसी-तामसी प्रवृतियों को बढ़ावा देते हैं। व्रत के अनुसार नमक का सेवन करने की भी मनाही है, क्योंकि यह शरीर में उत्तेजना उत्पन्न करता है। इसलिए उपवास के दौरान इसका सेवन नहीं किया जाना चाहिए।

शारीरिक शुद्धि के लिए ये खाएं

इसके साथ ही शारीरिक शुद्धि के लिए तुलसी जल, अदरक का पानी या फिर अंगूर भी इस दौरान ग्रहण किया जा सकता है। जबकि मानसिक शुद्धि के लिए जप, ध्यान, सत्संग, दान और धार्मिक सभाओं में भाग लेना चाहिए।

साथ ही ईश्वर का ध्यान भी करें

लेकिन इस बात का विशेष ख्याल रखें कि उपवास की प्रक्रिया सिर्फ कम खाने या सात्विक भोजन से ही पूर्ण नहीं हो जाती। इस दौरान सुबह-शाम ध्यान करना भी जरूरी है। इससे मन शांत होता है और अच्छाई के संस्कार बढ़ते हैं।


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