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    Sarvapitri Amavasya 2023: सर्वपितृ अमावस्या पर करें इस स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी निजात

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 12 Oct 2023 03:30 PM (IST)

    गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं। इस दौरान पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। साथ ही देव भूमि गया जी में पिंड दान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों की सेवा और पूजा करने से सुख सौभाग्य आय और वंश में वृद्धि होती है। अनदेखी करने से पितृ अप्रसन्न हो जाते हैं।

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    Sarvapitri Amavasya: सर्वपितृ अमावस्या पर करें इस स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी निजात

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Sarvapitri Amavasya 2023: सनातन पंचांग के अनुसार, 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या है। इस दिन पितरों को अंतिम तपर्ण दिया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन ही पितृ पक्ष का समापन होता है। अतः सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों की विशेष पूजा की जाती है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं। इस दौरान पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। साथ ही देव भूमि गया जी में पिंड दान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों की सेवा और पूजा करने से, सुख, सौभाग्य, आय और वंश में वृद्धि होती है। अनदेखी करने से पितृ अप्रसन्न हो जाते हैं। पितृ के अप्रसन्न रहने पर व्यक्ति को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो सर्वपितृ अमावस्या पर तर्पण के समय पितृ स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    पितृ स्तोत्र

    अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

    नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥

    इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

    सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥

    मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।

    तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥

    नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

    द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥

    देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

    अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि: ॥

    प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।

    योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥

    नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

    स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥

    सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

    नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥

    अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

    अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ॥

    ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।

    जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ॥

    तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।

    नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज: ॥

    पितृ के मंत्र

    ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।

    ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।

    नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।

    ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।

    शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।

    गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम

    गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।