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    Katyayani Stuti: शीघ्र विवाह के लिए रोजाना जरूर करें मां कात्यायनी की स्तुति, जल्द लगेगी हाथों में मेहंदी

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 18 Jun 2023 05:22 PM (IST)

    Katyayani Stuti कुंडली में कई प्रकार के दोष लगते हैं। इन दोषों की वजह से शादी में बाधा आती है। इनमें कालसर्प दोष पितृ दोष मंगल दोष अंगारक दोष और गुरु चांडाल दोष प्रमुख हैं। इनका निवारण अनिवार्य होता है।

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    Katyayani Stuti: शीघ्र विवाह के लिए रोजाना जरूर करें मां कात्यायनी की स्तुति, जल्द लगेगी हाथों में मेहंदी

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Katyayani Devi Stotram: सनातन धर्म में ज्योतिष शास्त्र का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से करियर, कारोबार, प्रेम, विवाह, राजयोग, धन लाभ, विदेश योग, संतान सुख सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त हो जाती है। कुंडली में कई प्रकार के दोष लगते हैं। इन दोषों की वजह से शादी में बाधा आती है। इनमें कालसर्प दोष, पितृ दोष, मंगल दोष, अंगारक दोष और गुरु चांडाल दोष प्रमुख हैं। इनका निवारण अनिवार्य होता है। ज्योतिषियों की मानें तो देवगुरु बृहस्पति और शुक्र दोनों विवाह के कारक हैं। कुंडली में गुरु और शुक्र मजबूत रहने पर शीघ्र शादी हो जाती है। वहीं, कमजोर होने पर शादी देर से होती है। ज्योतिष शादी में आ रही बाधा को दूर करने के लिए मां कात्यायनी की पूजा करने की सलाह देते हैं। धार्मिक मान्यता है कि विधि पूर्वक मां कात्यायनी की पूजा करने से जातक की शीघ्र शादी के योग बनने लगते हैं। अगर आपकी शादी में भी बाधा आ रही है, तो गुप्त नवरात्रि के दौरान प्रतिदिन मां कात्यायनी की विधि विधान से पूजा करें। साथ ही पूजा के समय मां कात्यायनी की स्तुति करें। इससे विवाह में आ रही बाधा दूर होती है। आइए, मां कात्यायनी की स्तुति करते हैं-

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    माता कात्यायनी देवी कवच

    कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।

    ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥

    कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

    माँ कात्यायनी देवी स्तोत्र

    !! ध्यान !!

    वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

    सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥

    स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।

    वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥

    पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।

    मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।

    प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।

    कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

    !! स्तोत्र !!

    कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।

    स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।

    सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।

    परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।

    विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।

    कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥

    कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।

    कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥

    कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।

    कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥

    कात्यायनी देवी की स्तुति

    नमस्ते त्रिजगद्वन्द्ये संग्रामे जयदायिनि।

    प्रसीद विजयं देहि कात्यायनि नमोSस्तुते।।

    सर्वशक्तिमये दुष्टरिपुनिग्रहकारिणि।

    दुष्टजृम्भिणि संग्रामे जयं देहि नमोSस्तुते।।

    त्वमेका परमा शक्ति: सर्वभूतेष्ववस्थिता।

    दुष्टं संहर संग्रामे जयंदेहि नमोSस्तुते।।

    रणप्रिये रक्तभक्षे मांसभक्षणकारिणि।

    प्रपन्नार्तिहरे युद्धे जयं देहि नमोSस्तुते।।

    खट्वांगासिकरे मुण्डमालाद्योतितविग्रहे।

    येत्वां स्मरन्ति दुर्गेषु तेषांदु:खहराभव।।

    त्वत्पादपंकजाद्दैन्यं नमस्ते शरणप्रिये।

    विनाशयरणेशत्रून्जयंदेहिनमोSस्तुते।।

    अचिन्त्यविक्रमेSचिन्त्यरूपसौन्दर्यशालिनि।

    अचिन्त्यचरितेSचिन्त्येजयंदेहिनमोSस्तुते।।

    येत्वांस्मरन्तिदुर्गेषुदेवींदुर्गविनाशिनीम्।

    नावसीदन्ति दुर्गेषु जयं देहिनमोSस्तुते।।

    महिषासृक्प्रिये संख्ये महिषासुरमर्दिनि।

    शरण्येगिरिकन्येमेजयंदेहिनमोSस्तुते।।

    प्रसन्नवदने चण्डि चण्डासुरमर्दिनि।

    संग्रामे विजयंदेहिशत्रूण्जहिनमोSस्तुते।।

    रक्ताक्षि रक्तदशने रक्तचर्चितगात्रके।

    रक्तबीजनिहन्त्रीत्वंजयंदेहिनमोSस्तुते।।

    निशुम्भशुम्भसंहन्त्रि विश्वकर्त्रि सुरेश्वरि।

    जहिशत्रूण्रणेनित्यंजयंदेहिनमोSस्तुते।।

    भवान्येतज्जगत्सर्वं त्वं पालयसि सर्वदा।

    रक्ष विश्वमिदंमातर्हत्वैतान्दुष्टराक्षसान्।।

    त्वंहि सर्वगता शक्तिर्दुष्टमर्दनकारिणि।

    प्रसीदजगतांमातर्जयं देहिनमोSस्तुते।।

    दुर्वृत्तवृन्ददमनि सद्वृत्तपरिपालिनि।

    निपातय रणे शत्रूण्जयंदेहिनमोSस्तुते।।

    कात्यायनि जगन्मात: प्रपन्नार्तिहरे शिवे।

    संग्रामे विजयं देहि भयेभ्य: पाहि सर्वदा।।

    डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '