Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Ganapati Atharvashirsha: सब संकटों से पाना चाहते हैं मुक्ति, तो रोजाना 21 बार करें इस स्त्रोत का पाठ

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 17 May 2023 09:10 AM (IST)

    Ganapati Atharvashirsha धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से गजानन की भक्ति और सेवा करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान गणेश की कृपा से पूर्ण होती हैं। साथ ही व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुखों का नाश होता है।

    Hero Image
    Ganapati Atharvashirsha: सब संकटों से पाना चाहते हैं मुक्ति, तो रोजाना 21 बार करें इस स्त्रोत का पाठ

     नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Ganapati Atharvashirsha: आज बुध प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि है। ज्येष्ठ महीने का प्रदोष व्रत बुधवार को पड़ रहा है। इसके लिए इसे बुध प्रदोष व्रत कहते हैं। बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस दिन विधि पूर्वक विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा-उपासना की जाती है।  सनातन धर्म में भगवान गणेश प्रथम पूजने का विधान है। आसान शब्दों में कहें तो किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत में भगवान गणेश की पूजा की जाती है। ऐसा करने से कार्य में किसी प्रकार की विघ्न बाधा नहीं आती है। इसके लिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से गजानन की भक्ति और सेवा करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान गणेश की कृपा से पूर्ण होती हैं। साथ ही व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुखों का नाश होता है। अत: साधक रोजाना भगवान गणेश की पूजा-उपासना करते हैं। अगर आप भी अपने जीवन में विषम परिस्थिति से गुजर रहे हैं, तो सब संकटों से निजात पाने के लिए रोजाना 21 बार गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति करें।  आइए, गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें-

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ।। अथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति ।।

    ॐ नमस्ते गणपतये।

    त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।

    त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।

    त्वमेव केवलं धर्तासि।।

    त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।

    त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।

    त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।

    ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।। अव त्वं मां।।

    अव वक्तारं।। अव श्रोतारं। अवदातारं।।

    अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।

    अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।। अवोत्तरातात्।।

    अव दक्षिणात्तात्।। अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।

    सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।

    त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।

    त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।

    त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।

    त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।

    त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।

    सर्व जगदि‍दं त्वत्तो जायते।

    सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।

    सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।

    सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।

    त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।

    त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।

    त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।

    त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।

    त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।

    त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।

    त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।

    त्वं शक्तित्रयात्मक:।।

    त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।

    त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।

    वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।

    गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।। अनुस्वार: परतर:।।

    अर्धेन्दुलसितं।।तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।

    गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।

    अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।

    नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।

    गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। ग‍णपति देवता।।

    ॐ गं गणपतये नम:।।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'