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    अर्जुन और कृष्ण रथ के धंसे पहिए निकालने के लिए नीचे उतरे तभी...

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 22 Sep 2016 10:44 AM (IST)

    जब हम ईश्वर पर भरोसा रख अपना कार्य ईमानदारी से करते हैं तो ईश्वर हमारी मदद जरूर करते हैं। महाभारत में भी ऐसा ही एक प्रसंग उल्लेखित है।

    जब हम ईश्वर पर भरोसा रख अपना कार्य ईमानदारी से करते हैं तो ईश्वर हमारी मदद जरूर करते हैं। ऐसे कई उदाहरण सुनने और पढ़ने के लिए मिल जाते हैं। महाभारत में भी ऐसा ही एक प्रसंग उल्लेखित है।

    महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे। युद्ध रोमांचक होता जा रहा था। दोनों योद्धा एक-दूसरे पर शक्तियों का प्रयोग कर रहे थे। कर्ण ने अर्जुन को हराने के लिए सर्प बाण के उपयोग करने का विचार किया।

    इस बाण को कर्ण ने वर्षों से संभाल कर रखा था। पाताललोक में अश्वसेन नाम का नाग था, जो अर्जुन को अपना शत्रु मानता था। खांडव वन में अर्जुन ने उसकी माता का वध किया था। अश्वसेन तभी से अर्जुन को मारने के लिए मौके की तलाश में था।

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    कर्ण को सर्प बाण का संधान करते देख अश्वसेन खुद बाण पर विराजित हो गया। कर्ण ने अर्जुन पर निशाना साधा। अर्जुन का रथ चला रहे भगवान कृष्ण ने अश्वसेन को पहचान लिया।

    अर्जुन के प्राणों की रक्षा के लिए भगवान ने अपने पैरों से रथ को दबा दिया। रथ के पहिए जमीन में धंस गए। घोड़े बैठ गए और तीर अर्जुन के गले की बजाय उसके मस्तक पर लग गया। इससे उसका मुकुट छिटककर धरती पर जा गिरा।

    अर्जुन और भगवान कृष्ण रथ के धंसे पहिए निकालने के लिए नीचे उतरे। तभी मौका देखकर कर्ण ने अर्जुन पर वार शुरू कर दिया और कृष्ण को 12 तीर मारे। अर्जुन की रक्षा के लिए भगवान ने वो तीर भी अपने ऊपर झेल लिए। भगवान ने अर्जुन को अश्वसेन के बारे में बताया। अर्जुन ने छह तीरों से अश्वसेन का अंत कर दिया।