Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Dashrath Shani Strota: सभी संकटों से पाना चाहते हैं मुक्ति, तो शनिवार के दिन करें दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sat, 01 Jul 2023 10:03 AM (IST)

    Dashrath Krit Shani Strota धार्मिक मान्यता है कि शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। अगर आप भी शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो शनिवार के दिन पूजा के समय दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करें।

    Hero Image
    Shani Strota: सभी संकटों से पाना चाहते हैं मुक्ति, तो शनिवार के दिन करें दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Dashratha Shani Sotra: सनातन धर्म में शनिवार के दिन न्याय के देवता शनिदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि हेतु उपासक व्रत भी रखते हैं। शास्त्रों में निहित है कि शनिदेव कर्मफल दाता हैं। आसान शब्दों में कहें तो व्यक्ति द्वारा किए गए कर्मों के अनुरूप शनिदेव फल देते हैं। शनिदेव अच्छे कर्म करने वाले को अपनी कृपा-दृष्टि से धनवान बना देते हैं। वहीं, बुरे कर्म करने वाले को दंड देते हैं। एक बार शनिदेव की कुदृष्टि व्यक्ति पर पड़ जाती है, तो उसके जीवन में केवल अमंगल ही अमंगल होता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्राचीन समय में न्याय के देवता शनिदेव ने राजा विक्रमादित्य की कठिन परीक्षा ली थी। इसका वर्णन यक्षज्ञान द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। अतः साधक श्रद्धा भाव से शनि देव की पूजा-उपासना करते हैं। इस समय अनजाने में किए हुए पाप और अपराध हेतु क्षमा याचना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही करियर और कारोबार में व्यक्ति को मन मुताबिक सफलता मिलती है। अगर आप भी शनि देव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो शनिवार के दिन पूजा के समय दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करें। दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं-

    दशरथकृत शनि स्तोत्र

    दशरथ उवाच:

    प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥

    रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।

    सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥

    याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।

    एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥

    प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।

    पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥

    दशरथकृत शनि स्तोत्र:

    नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।

    नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥

    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

    नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥

    नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।

    नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥

    नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥

    नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।

    सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥

    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।

    नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥

    तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।

    नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥

    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।

    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।

    त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥

    प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।

    एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥

    दशरथ उवाच:

    प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।

    अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'