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    Pradosh Vrat 2025: रवि प्रदोष व्रत कथा के बिना पूरी नहीं होती पूजा, जरूर करें इसका पाठ

    Updated: Sun, 08 Jun 2025 10:18 AM (IST)

    प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। इस व्रत का पालन करने से शांति समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ महीने का पहला प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat 2025) 8 जून यानी आज के दिन रखा जा रहा है।

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    Ravi Pradosh Vrat Katha: रवि प्रदोष व्रत की कथा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत ज्यादा महत्व है। यह दिन भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। यह हर महीने में दो बार यानी त्रयोदशी तिथि को आते हैं। कहा जाता है कि इसका पालन करने से शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। जब यह पवित्र व्रत रविवार के दिन पड़ता है, तो इसका आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

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    वहीं, जो साधक इस उपवास को रखते हैं, उन्हें इसकी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। तभी व्रत (Ravi Pradosh Vrat 2025 Katha) की पूजा पूर्ण मानी जाती है, तो आइए पढ़ते हैं।

    रवि प्रदोष व्रत की कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha Ka Path)

    एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी निवास करती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था, जिस वजह से वो भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो नन्हे बालक दुखी अवस्था में मिलें, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी। वह सोचने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के पश्चात वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं।

    गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया।

    फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई। दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के पुण्य प्रताप से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से मिल गया। इससे खुश होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान प्रदान किया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।