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    Ravi Pradosh Vrat 2024: रवि प्रदोष पर ऐसे करें भगवान शिव को प्रसन्न, हर इच्छा होगी पूर्ण

    Updated: Sun, 15 Sep 2024 09:47 AM (IST)

    रवि प्रदोष व्रत भगवान शंकर को बेहद प्रिय है। यह महीने में दो बार आते हैं। इस बार यह व्रत 15 सितंबर यानी आज रखा जा रहा है। रविवार को पड़ने की वजह से इसे रवि प्रदोष (Ravi Pradosh Vrat 2024) के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष की दृष्टि से इस बार का प्रदोष व्रत बेहद खास माना जा रहा है जिसे करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होगी।

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    Ravi Pradosh Vrat 2024: लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस शुभ दिन पर लोग उपवास रखते हैं और अपने परिवार की उन्नति के लिए खास पूजा करते हैं। कहा जाता है यह व्रत भोलेनाथ को अति प्रिय है। ये प्रति माह दो बार आते हैं। इस बार यह व्रत 15 सितंबर, 2024 दिन रविवार यानी आज रखा जा रहा है। ऐसे में जो लोग इस पवित्र दिन (Ravi Pradosh Vrat 2024) पर शाम के समय भगवान शंकर की विधि अनुसार पूजा करते हैं और लिंगाष्टकम स्तोत्र (Shiv Lingastakam Stotra) का पाठ करते हैं, उन्हें हर वो चीज प्राप्त होती है, जिसकी वो कामना रखते हैं, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

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    ।।लिंगाष्टकम स्तोत्र (Shiv Lingastakam Stotra)।।

    ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।

    जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥

    देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।

    रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥

    सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।

    सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥

    कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।

    दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥

    कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।

    सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥

    देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।

    दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥

    अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।

    अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥

    सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।

    परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥

    लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।

    शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

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    ॥ श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ॥

    नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,

    भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।

    नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,

    तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥॥

    मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,

    नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।

    मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,

    तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥॥

    शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,

    सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।

    श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,

    तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥॥

    वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,

    मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।

    चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,

    तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥॥

    यक्षस्वरूपाय जटाधराय,

    पिनाकहस्ताय सनातनाय ।

    दिव्याय देवाय दिगम्बराय,

    तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥॥

    पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।

    शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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