Ramakrishna Paramahamsa Jayanti 2021: कर्म का आधार है भक्ति, स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शब्दों में जानें कर्मयोग
Ramakrishna Paramahamsa Jayanti 2021 आज रामकृष्ण परमहंस की जयंती है। उनका जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। इस वर्ष यह तिथि आज 15 मार्च को है। रामकृष्ण परमहंस मां काली के उपासक और स्वामी विवेकानंद के गुरु थे।
Ramakrishna Paramahamsa Jayanti 2021: आज रामकृष्ण परमहंस की जयंती है। उनका जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। इस वर्ष यह तिथि आज 15 मार्च को है। रामकृष्ण परमहंस मां काली के उपासक और स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। उनकी जयंती के अवसर पर रामकृष्ण परमहंस जी से जानते हैं कर्मयोग के बारे में।
कर्मयोग यानी कर्म के द्वारा ईश्वर के साथ योग। अनासक्त होकर किए जाने पर प्राणायाम, ध्यान-धारणादि अष्टांग योग या राजयोग भी कर्मयोग ही है। संसारी लोग अगर अनासक्त होकर ईश्वर पर भक्ति रखकर उन्हें फल (परिणाम) समर्पण करते हुए संसार के कर्म करें तो वह भी कर्मयोग है। फिर ईश्वर को फल समर्पण करते हुए पूजा, जप आदि करना भी कर्मयोग ही है। ईश्वर लाभ ही कर्मयोग का उद्देश्य है। सत्वगुणी व्यक्ति का कर्म स्वभावत: छूट जाता है, प्रयत्न करने पर भी वह कर्म नहीं कर पाता। जैसे, गृहस्थी में बहू के गर्भवती हो जाने पर सास धीरे-धीरे उसके कामकाज घटाती जाती है और जब उसके बच्चा पैदा हो जाता है, तब तो उसे केवल बच्चे की देखभाल के सिवा और कोई काम नहीं रह जाता।
जो सत्वगुणी नहीं हैं, उन्हें संसार के सभी कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। उन्हें ईश्वर के चरणों में अपना सब कुछ समर्पण कर संसार में धनी व्यक्ति के घर की दासी की तरह रहना चाहिए। यही कर्मयोग है। जितना संभव हो, ईश्वर का ध्यान तथा नाम-जप करते हुए, उन पर निर्भर रहकर अनासक्त भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना ही कर्मयोग का रहस्य है।
भगवान को तुम एक गुना जो कुछ अर्पित करोगे, उसका हजार गुना पाओगे। इसीलिए सब कार्य करने के बाद जलांजलि दी जाती है-श्रीकृष्ण को फल-समर्पण किया जाता है। युधिष्ठिर जब सब पाप श्रीकृष्ण को अर्पण करने जा रहे थे, तब भीम ने उन्हें सावधान करते हुए कहा, ऐसा काम मत करें। श्रीकृष्ण को जो कुछ अर्पित करेंगे, उसका हजार गुना आपको प्राप्त होगा।
विशेषकर इस कलियुग में अनासक्त होकर कर्म करना बहुत ही कठिन है। इसलिए इस युग के लिए कर्मयोग, ज्ञानयोग आदि की अपेक्षा भक्तियोग ही अच्छा है, परंतु कर्म कोई छोड़ नहीं सकता। मानसिक क्रियाएं भी कर्म हैं। मैं विचार कर रहा हूं, ध्यान कर रहा हूं- यह भी कर्म ही है। प्रेम-भक्ति के द्वारा कर्ममार्ग सहज हो जाता है।
ईश्वर पर प्रेम-भक्ति बढ़ने से कर्म कम हो जाता है और शेष कर्म अनासक्त होकर किया जा सकता है। भक्ति लाभ होने पर विषय कर्म धन, मान, यश आदि अच्छे नहीं लगते। मिसरी का शरबत पीने के बाद गुड़ का शरबत भला कौन पीना चाहेगा। ईश्वर में भक्ति हुए बिना कर्म बालू की भीत की तरह निराधार है।
— स्वामी रामकृष्ण परमहंस
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