Ram Navami 2024: जीवन जीने का गुण सिखाते हैं प्रभु श्रीराम, जानें आदर्श जीवन की रामकहानी
सनातन धर्म में ईश्वर के कई अवतारों का वर्णन है मगर श्रीराम ही ऐसे थे जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा मिली। उनके जीवन से हर व्यक्ति को कई सारी सीखें मिलती हैं। ऐसे में रामनवमी (Ram Navami 2024) से पूर्व आरती तिवारी साझा कर रही हैं उनके उन गुणों को जिन्हें विद्यार्थी जीवन में अपनाकर आप भी बन सकते हैं आदर्श बालक।

आरती तिवारी, Ram Navami 2024। दादी के साथ पार्क में टहल रहा 10 साल का विहान रोज भगवान श्रीराम की कहानियां सुनता है। वो हमेशा यही सोचता है कि दादी को भगवान श्रीराम कुछ ज्यादा ही अच्छे लगते हैं। तभी तो वो बस उनके ही गुणों के बारे में बताती हैं। विहान को भी दादी का फेवरेट बनना है, इसलिए वो दादी की कहानियों से भगवान श्रीराम के गुणों की सूची बना रहा है। श्रीराम के आदर्श ऐसे हैं कि यह विहान सहित हर बच्चे के न सिर्फ बेहतर वर्तमान बल्कि शानदार भविष्य के लिए भी जरूरी हैं।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
ऐकैकमक्षरं पुसां महापातक नाशनम्।।
श्रीराम के चरित्र को आदर्श, नैतिकता और व्यवहार का उच्चतम मानदंड माना जाता है जो बहुत विस्तृत है और जिससे मनुष्य के महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। श्रीराम का जीवन एक सीख नहीं अपितु सीखों का खजाना है| गुरु-शिष्य, राजा-प्रजा, स्वामी-सेवक, पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-भाई, मित्र-मित्र के आदर्शों के साथ धर्मनीति, राजनीति, कूटनीति, अर्थनीति, सत्य, त्याग, सेवा, प्रेम, क्षमा, परोपकार, शौर्य, दान आदि मूल्यों का सुंदर आदर्श हमें उनके जीवन से सीखने को मिलता है ।
कौशल बनाते हैं गुणी
चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के पुत्र होने के बाद भी श्रीराम उपनयन संस्कार के बाद गुरुकुल गए, जहां न तो महल जैसा सुख था और न ही कोई स्वजन। मगर श्रीराम यह समझते थे कि विद्या और कौशल के बलबूते ही वे भविष्य में अपनी जिम्मेदारियों को निभा पाएंगे। बिना ज्ञान अथवा कौशल के राज्य की देखभाल करना तो असंभव था। ठीक वैसे ही आपने भी भविष्य में कुछ बनने का स्वप्न संजोया होगा, तो उसको पूर्ण करने के लिए आवश्यक कौशल पूरा करना भी महत्वपूर्ण है।
धैर्य से हल होता हर कार्य
गणित का सवाल हल करते-करते अचानक तनाव होने लगता है कि प्रश्न इतना कठिन है कि हल ही नहीं हो रहा। तो वहीं कोई पजल साल्व करते-करते मन में आया कि यह तो हो ही नहीं रहा, और पूरी पजल खराब कर दी। यहां भगवान राम की तरह धैर्य रखना सीखें। 14 वर्ष का वनवास पूरा करने के लिए उन्होंने धैर्य का पालन किया। कहीं, अगर वो भी वनवास के दौरान आने वाली समस्याओं से परेशान होने लगते तो फिर कैसे काम चलता! इसी तरह जब जानकारी मिली कि माता सीता का हरण रावण ने किया है, तो भी श्रीराम ने धैर्यपूर्वक पूरी योजना बनाई, साथी जुटाए, युद्धविराम के प्रस्ताव भेजे और तब युद्ध लड़ा।
आदर्श नेतृत्वकर्ता
कई बार होता है कि हम एक समूह का हिस्सा होते हैं मगर उस समूह को अपनी तकलीफ साझा करने के लिए एक मजबूत आवाज की जरूरत होती है। जैसे ही वह आवाज मुखर होती है, साथ जुड़ने वाले लोग भी आ जाते हैं। नेतृत्व का यही गुण सबसे मुख्य था भगवान श्रीराम में। वो सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। उनकी बेहतर नेतृत्व क्षमता की वजह से ही लंका पहुंचने के लिए पत्थरों का सेतु बन पाया। श्रीराम ने सामान्य लोगों को जोड़कर ऐसी ताकत का निर्माण किया, जिससे रावण जैसे शक्तिशाली शासक को भी पराजित होना पड़ा। भगवान श्रीराम ने लोगों को संगठन में शक्ति की सीख दी। तो अगर कभी आपको कक्षा में लगे कि कोई वास्तविक समस्या है, मगर बाकी विद्यार्थी इसे टीचर के सामने कहने में हिचक रहे हैं तो श्रीराम की तरह नेतृत्व का गुण अपनाएं।
सहायता मांगने में कैसी झिझक
अगर लगता है कि आपको सब कुछ आता है, मगर कोई समस्या सामने आने पर आप सिर्फ इस कारण मदद नहीं मांग रहे कि कोई आपके प्रति नकारात्मक राय बना लेगा तो याद रखिए कि चक्रवर्ती सम्राट के पुत्र, नेतृत्व में योग्य, कुशल धनुर्धर होने जैसे तमाम गुणों के बाद भी भगवान श्रीराम कभी भी मदद मांगने में हिचकिचाए नहीं। माता सीता का पता लगाने के लिए सुग्रीव और हनुमान हों या समुद्र पर सेतु बनाने में वानर सेना, आवश्यकता पर मदद मांगने में श्रीराम कभी नहीं हिचकिचाए।
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