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    Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन के दिन करें ये विशेष आरती, भाई-बहन के रिश्ते में बढ़ेगा प्यार

    Updated: Sat, 09 Aug 2025 07:40 AM (IST)

    रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2025) भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस साल यह 09 अगस्त 2025 यानी आज मनाया जा रहा है। इस दिन शिव और विष्णु जी की पूजा से जीवन में खुशहाली आती है और रिश्ते मधुर होते हैं। वहीं इस दिन पूजा-अर्चना और दान-पुण्य का भी बहुत ज्यादा महत्व है।

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    Raksha Bandhan 2025: विष्णु जी और भगवान शिव की आरती।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक रक्षाबंधन का पर्व है। इस साल यह 09 अगस्त, 2025 यानी आज के दिन मनाया जा रहा है। यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा होती है। कहते हैं कि इस मौके (Raksha Bandhan 2025) पर पूजा-अर्चना और दान-पुण्य करने से जीवन में खुशहाली आती है।

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    इसके साथ ही भाई-बहन के रिश्ते मधुर होते हैं। इस शुभ दिन को और भी ज्यादा शुभ बनाने के लिए आइए शिव जी के साथ श्री हरि की आरती करके उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।

    ।।शिव जी की आरती।। (Lord Shiv Aarti)

    जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

    ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥

    एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

    हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

    दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

    अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

    चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

    सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥

    कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

    जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

    प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

    काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

    नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

    कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

    ।।विष्णु की आरती।। (Om Jai Jagdish Hare Aarti)

    ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

    भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।

    जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।

    सुख संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।

    मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।

    तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।

    तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी।

    पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।

    तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।

    मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।

    तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।

    किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे।

    दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

    अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।

    विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वामी पाप हरो देवा।

    श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।

    श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।

    कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।