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    Rahu-Ketu Kavach: शनिवार के दिन करें इस कवच का पाठ, राहु-केतु भी देंगे शुभ फल

    Updated: Sat, 01 Jun 2024 07:00 AM (IST)

    शनिवार के दिन राहु-केतु की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि अगर उनकी (Rahu-Ketu Pujan) स्थिति कुंडली में अच्छी होती है तो व्यक्ति का जीवन सुखमय बीतता है। ऐसे में शनिवार के दिन प्रात स्नान करें। इसके बाद राहु-केतु की पूजा विधि अनुसार करें। फिर उनके कवच का पाठ करें जो यहां दिया गया है। पूजा का समापन आरती से करें।

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    Rahu-Ketu Pujan: राहु-केतु कवच का पाठ -

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में राहु-केतु की पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है। उनकी पूजा के लिए शनिवार का दिन बेहद शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि राहु-केतु (Rahu-Ketu Pujan) की स्थिति कुंडली में अच्छी होती है, तो व्यक्ति का जीवन सुखमय बीतता है। ऐसे में शनिवार के दिन प्रात: स्नान करें। इसके बाद राहु-केतु की पूजा विधि अनुसार करें। फिर उनके कवच का पाठ अवश्य करें, जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।

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    ॥राहु कवच॥

    अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।

    अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं । नमः शक्तिः ।

    स्वाहा कीलकम् । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

    प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ॥

    सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ॥

    निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः ।

    चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ॥

    नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम ।

    जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ॥

    भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।

    पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ॥

    कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।

    स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥

    गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।

    सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ॥

    राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो ।

    भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।

    प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु

    रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ॥

    ॥केतु कवच॥

    अस्य श्रीकेतुकवचस्तोत्रमंत्रस्य त्र्यंबक ऋषिः ।

    अनुष्टप् छन्दः । केतुर्देवता । कं बीजं । नमः शक्तिः ।

    केतुरिति कीलकम् I केतुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

    केतु करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम् ।

    प्रणमामि सदा केतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् ॥

    चित्रवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसमद्युतिः ।

    पातु नेत्रे पिंगलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः ॥

    घ्राणं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः ।

    पातु कंठं च मे केतुः स्कंधौ पातु ग्रहाधिपः ॥

    हस्तौ पातु श्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः ।

    सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः ॥

    ऊरुं पातु महाशीर्षो जानुनी मेSतिकोपनः ।

    पातु पादौ च मे क्रूरः सर्वाङ्गं नरपिंगलः ॥

    य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम् ।

    सर्वशत्रुविनाशं च धारणाद्विजयि भवेत् ॥

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