Move to Jagran APP

Puthandu 2024: कब और कैसे मनाया जाता है पुथांडु का पर्व? जानें इसकी मान्यता

तमिल नव वर्ष की शुरुआत को पुथांडु कहा जाता है। तमिलनाडु के साथ-साथ आस पास के क्षेत्रों में भी इस पर्व को बड़े ही उत्साह और पारम्परिक तरीके से मनाया जाता है। यह पर्व तमिल लोगों में बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं तमिल नव वर्ष यानी पुथांडु कब और कैसे मनाया जाता है।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Published: Sat, 13 Apr 2024 05:26 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2024 09:07 AM (IST)
Tamil New Year 2024 इस दिन से हो रही है तमिल नव वर्ष की शुरुआत।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Tamil New Year 2024: भले ही विश्व के अधिकतर देशों में 01 जनवरी से नए साल की शुरुआत मानी जाती है। लेकिन सभी धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार, अलग-अलग दिन पर भी नववर्ष मनाया जाता है। तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगादी के रूप में, तो वहीं पश्चिम बंगाल में पोइला बैसाख के रूप में नया साल मनाया जाता है। आज हम आपको तमिल नववर्ष यानी, पुथांडु के विषय में बताने जा रहे हैं।  

loksabha election banner

कब मनाया जाता है पुथंडु

पुथांडु एक तमिल शब्द है, जिसका अर्थ होता है नया साल। यह पर्व तमिल कैलेंडर के अनुसार, जब संक्रांति सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच पड़ती है, तो उस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में साल 2024 में पुथंडु 14 अप्रैल, रविवार के दिन मनाया जाएगा।

पुथांडु के दिन संक्रांति का क्षण - 13 अप्रैल रात्रि 09 बजकर 15 मिनट पर

क्या है मान्यता

तमिल लोगों द्वारा पुथांडु का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन से भगवान ब्रह्म ने सृष्टि का निर्माण शुरू किया था। साथ ही इस तिथि पर भगवान इंद्र स्वयं धरती पर लोगों के कल्याण के लिए उतरे थे। माना जाता है कि इस दिन पर पूजा करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही उनका पूरा वर्ष अच्छा बीतता है।

कैसे मनाया जाता है यह पर्व

पुथांडु को तमिल लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन को पुथुरूषम एवं वरुषा पिरप्पु के नाम से भी जाना जाता है। इस खास मौके पर लोग अपने घर की अच्छे से साफ-सफाई करते हैं। साथ ही घर को रंगोली से घर को सजाया जाता है, जिसमें चावल के आटे का भी उपयोग किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से जो सौभाग्य आता है।

इसके बाद लोग पारंपरिक वस्त्र धारण करके अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही मंदिर जाकर भी भगवान का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस दिन पर चावल की खीर का भोग लगाने का विशेष महत्व माना गया है। इसी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस दिन शाकाहारी भोजन ही किया जाता है।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.