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पुष्कर शहर का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है

मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता। ढेर सारी दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले लगाए जाते हैं। ऊंटों और रेगिस्तान की नजदीकी के कारण यह मेला और भी रंगीन हो जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 14 Nov 2016 11:21 AM (IST)Updated: Mon, 14 Nov 2016 11:39 AM (IST)
पुष्कर शहर का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है

अजमेर से 11 किमी दूर है प्रसिद्ध तीर्थ स्थल 'पुष्कर'। यह वही स्थान है जहां परमपिता ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर है। पुष्कर की एक और खास विशेषता है 'पुष्कर का मेला'। यहां रंग-बिरंगे कपड़ों से सजे ऊंटों को देखने और खरीदने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

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पुष्कर का मेला नवंबर माह में यानी कार्तिक पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है। जहां देशी और विदेशी लोगों भारी संख्या में पहुंचते हैं।

प्राचीन शहर है पुष्कर

पुष्कर शहर का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहते हैं ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। वहीं रामायण के सर्ग 62 श्लोक 28 में विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। सर्ग 63 श्लोक 15 के अनुसार मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। कहते हैं कि पर्यटकों का स्वर्ग 'तीर्थराज' पुष्कर, पद्म-पुराण के अनुसार सभी तीर्थो में श्रेष्ठ माना गया है।

सांची स्तूप दानलेखों में, जिनका समय ई. पू. दूसरी शताबदी है, कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता है जो पुष्कर में निवास करते थे। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3000 गायों एवं एक गांव का दान किया था।

पुष्कर मेले की रोचक बातें...

- स्थानीय प्रशासन इस मेले की व्यवस्था करता है एवं कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

- यहां पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम भी किए जाते हैं, जिसमें श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को पुरस्कृत किया जाता है।

- पुष्कर ऊंट मेले ने इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है।

- मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले लगाए जाते हैं। ऊंटों और रेगिस्तान की नजदीकी के कारण यह मेला और भी रंगीन हो जाता है।


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